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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् आगर्हिता जीवाः । भापायर्या नाम ये शिष्टभाषानियतवर्ण लोकरूढस्पष्टशब्दं पञ्चविधानामप्यार्याणां संव्यवहारं भाषन्ते ।।
विशेषव्याख्या-मनुष्य दो प्रकारके हैं, आर्य और म्लिश । उनमेंसे आर्य छह प्रकारके हैं, क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कुलार्य, कर्मार्य, शिल्पार्य, तथा भाषार्य । इनमेंसे क्षेत्रार्य वे हैं, जो पन्द्रह प्रकारकी कर्म भूमियोंमें उत्पन्न हैं, जैसे भारतवर्षके साढ़े छब्बीस जनपदोंमें तथा शेष चक्रवर्तीविजयोंमें उत्पन्न हुए मनुष्य । अर्थात् आर्यक्षेत्रोंमें उत्पन्न होनेसे उनकी आर्य संज्ञा हुई है । और जात्यार्य अर्थात् जातिसे आर्य; जैसे इक्ष्वाकु, विदेह, हरि, अम्बष्ठ, ज्ञात, कुरु, वुवुनाल, उग्र, भोग, तथा राजन्य इत्यादि । कुलसे आर्य; जैसे कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव, अथवा और जो कुलकरोंके तीसरेसे आरंभ करके पंचमसे आदिलेके अथवा सप्तमकुलसे जो उत्पन्न हुए हैं, जिनका विशुद्धकुल और प्रकृति है, वे सब कुलार्य हैं। तथा कार्य अर्थात् कर्मसे आर्य, जैसे; यजन (यज्ञकरना) याजन (यज्ञकराना), अध्ययन, अध्यापन आदि प्रयोग करनेवाले तथा कृषि (खेती), लिपि (लेखन), वाणिज्य (व्यापार), आदि योनि पोषणकी वृत्ति करनेवाले सब कार्य हैं । और तन्तुवाय (कपड़े बुननेवाले), कुलाल (कुंभार), नापित (नाई), तुन्नवाय (सूत कातनेवाले), और देवट आदि जो अल्पपापयुक्त अथवा अनिन्दित जीविका करनेवाले हैं, वे शिल्पार्य हैं । और भाषार्य वे हैं, जो शिष्टभाषाके नियत वर्णोसे बने हुए और लोकमें प्रसिद्ध स्पष्ट शब्दोंको जिनको कि पूर्वोक्त पांच प्रकारके आर्य व्यवहार में लाते हैं, भाषण करते हैं। ___ अतो विपरीता म्लिशः । तद्यथा । हिमवतश्चतसृषु विदिक्षु त्रीणि योजनशतानि लवणसमुद्रमवगाह्य चतसृणां मनुष्यविजातीनां चत्वारोऽन्तरद्वीपा भवन्ति त्रियोजनशतविकम्भायामाः । तद्यथा । एकोरुकाणामाभाषकाणां लाङ्गलिकानां वैषाणिकानामिति ॥ चत्वारि योजनशतान्यवगाह्य चतुर्योजनशतायामविष्कम्भा एवान्तरद्वीपाः । तद्यथा । हयकर्णानां गजकर्णानां गोकर्णानां शष्कुलिकानामिति ॥ पञ्चशतान्यवगाह्य पञ्चयोजनशतायामविकम्भा एवान्तरद्वीपाः । तद्यथा । गजमुखानां व्याघ्रमुखानामादर्शमुखानां गोमुखानामिति ॥ षडूयोजनशतान्यवगाह्य तावदायामविष्कम्भा एवान्तरद्वीपाः । तद्यथा । अश्वमुखानां हस्तिमुखानां सिंहमुखानां व्याघ्रमुखानामिति ॥ सप्त योजनशतान्यवगाह्य तावदायामविष्कम्भा एवान्तरद्वीपाः । तद्यथा । अश्वकर्णसिंहकर्णहस्तिकर्णकर्णप्रावरणनामानः ॥ अष्टौ योजनशतान्यवगाह्याष्टयोजनशतायामविष्कम्भा एवान्तरद्वीपाः । तद्यथा । उल्कामुखविद्युजिह्वमेषमुखविद्युदन्तनामानः ॥ नवयोजनशतायामविष्कम्भा एवान्तरद्वीपा भवन्ति । तद्यथा । घनदन्तगूढदन्तविशिष्टदन्तशुद्धदन्तनामानः ॥ एकोरुकाणामेकोरुकद्वीपः । एवं शेषाणा मपि स्वनामभिस्तुल्यनामानो वेदितव्याः ॥ शिखरिणोऽप्येवमेवेत्येवं षट्पञ्चाशदिति ॥
और इनके विरुद्ध म्लिश अर्थात् म्लेच्छ हैं । जैसे; हिमवानपर्वतकी चारों विदिशाओंमें तीनसौ योजन लवणसमुद्रमें प्रवेश करके, चार मनुष्योंकी विजातियों (निंद्य
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