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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
८.१
जान लेना । अर्थात् हरि तथा विदेहका विभाजक निषध है, विदेह तथा रम्यकका विभाजक नील है । रम्यक हैरण्यवतका रुक्मी है, और हैरण्यवत तथा ऐरावत वर्षका विभाजक शिखरी पर्वत है ॥ ११ ॥
तत्र पञ्च योजनशतानि षड्विंशानि षट् चैकोनविंशतिभागा भरतविष्कम्भः । स द्विद्विहिमवद्वैमवतादीनामा विदेहेभ्यः । परतो विदेहेभ्योऽर्धार्धहीनाः ॥ पञ्चविंशतियोजनान्यवगाढो योजनशतोच्छ्रायो हिमवान् । तद्विर्महाहिमवान् । तद्विर्निषध इति ॥
उनमें से पांचसौ छब्बीस योजन और छहके उन्नीसवें भाग ( ५२६९ ) विष्कंभ प्रमाण सहित भरतवर्ष है । आगे हिमवत आदि पर्वत तथा हेमवत आदि क्षेत्रोंके विकंभ विदेहक्षेत्र पर्यन्त दूने २ होते चले गये हैं, और विदेहसे परे (आगे) अर्ध अर्ध न्यून होते गये हैं । उनमें पच्चीस योजन विस्तृत और शतयोजन ऊंचा हिमवान है, और उसका भी दूना निषध है ।
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भरतवर्षस्य योजनानां चतुर्दशसहस्राणि चत्वारि शतान्येकसप्ततानि षट् च भागा विशेषतो ज्या । इषुर्यथोक्तो विष्कम्भः । धनुःकाष्ठं चतुर्दशसहस्राणि शतानि पञ्चाष्टाविंशान्येकादश च भागाः साधिकाः ॥
और चौदह सहस्र चार सौ योजन तथा इकहत्तर में छह भाग ( १४४००१ योजन ) भरतवर्षकी ज्यो प्रत्यञ्चा अथवा जीवा है । इषु अर्थात् वाणका विष्कंभ ५२६६ योजन कहा है । और धनुष्काष्ठ अर्थात् चापकी परिधि चौदह सहस्र पांचसौ और कुछ अधिक अठ्ठाईसमें ग्यारह भाग योजन विष्कंभ ( १४५०० ) है ।
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भरतक्षेत्रमध्ये पूर्वापरायत उभयतः समुद्रमवगाढो वैतान्यपर्वतः षड् योजनानि सक्रोशानि धरणिमवगाढः पञ्चाशद्विस्तरतः पञ्चविंशत्युच्छ्रितः ॥
भरतवर्ष में पूर्व से पश्चिम की ओर लम्बा पड़ा हुआ दो ओरके समुद्र में प्रविष्ट बैताढ्य (बैताद्या विजयार्ध) पर्वत है; जो कि कुछ कोश अधिक छह योजन पृथिवीमें प्रविष्ट है । पचास योजन विस्तृत और पच्चीस योजन ऊंचा है ।
विदेहेषु निषधस्योत्तरतो मन्दरस्य दक्षिणतः काञ्चनपर्वतशतेन चित्रकूटेन विचित्रकूटेन चोपशोभिता देवकुरवो विष्कम्भेणैकादश योजन सहस्राण्यष्टौ च शतानि द्विचत्वारिंशानि द्वौ च भागौ । एवमेवोत्तरेणोत्तराः कुरवश्चित्रकूटविचित्रकूटहीना द्वाभ्यां च काञ्चनाभ्यामेव यमकपर्वताभ्यां विराजिताः ॥
विदेहवर्ष में निषध पर्वतके उत्तर, मन्दरके दक्षिण काञ्चनमय शतपर्वत सहित चित्र - कूट तथा विचित्रकूटसे उपशोभित देवकुरु भोगभूमि हैं । जो कि ग्यारह हजार आठसौ और वियालीसमें दो भाग (११८००४२) योजन विष्कंभ प्रमाण सहित है । इसी प्रकार
१ धनुष्की डोरी के तुल्य रेखा.
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