________________
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् तत्र भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहरण्यवतैरा
वतवर्षाः क्षेत्राणि ॥ १०॥ सूत्रार्थ:-उस जम्बूद्वीपमें भरत हैमवतादि सात वर्षधर क्षेत्र हैं। भाष्यम्-तत्र जम्बूद्वीपे भरतं हैमवतं हरयो(?)विदेहा रम्यक हैरण्यवतमैरावतमिति सप्त वंशाः क्षेत्राणि भवन्ति । भरतस्योत्तरतो हैमवतं हैमवतस्योत्तरतो हरय इत्येवं शेषाः । वंशा वर्षा वास्या इति चैषां गुणतः पर्यायनामानि भवन्ति । सर्वेषां चैषां व्यवहारनयापेक्षादादित्यकृताद्दिगनियमादुत्तरतो मेरुर्भवति । लोकमध्यावस्थितं चाष्टप्रदेशं रुचकं दिग्नियमहेतुं प्रतीत्य यथासम्भवं भवतीति ।
विशेषव्याख्या-जम्बूद्वीपमें भरत १, हैमवत २, हरि ३, विदेह ४, रम्यक् ५, हरण्यवत ६, और ऐरावत ७; ये सात वंशधर क्षेत्र हैं । भरतके उत्तर हैमवत है,
और हैमवतके उत्तर हरिनामक क्षेत्र है। इस प्रकार रम्यकादि भी पूर्व २ के उत्तर समझ लेना चाहिये । वंश, वर्ष, तथा वास्य ये इन क्षेत्रोंके गुणसे पर्याय नाम हैं, अर्थात् ये सात वंशधरपर्वत, वर्षधरपर्वत अथवा वास्यधरपर्वत कहे जा सकते हैं । और व्यवहार नयकी अपेक्षासे, सूर्यकृत दिशाके नियमसे, इन भरत हैमवत आदि सब क्षेत्रोंमें मेरु उत्तर दिशामें है । परन्तु लोकके मध्यमें स्थित रुचकाष्ट प्रदेशोंको दिशाओंका हेतु मानकर यथासम्भव निश्चय दिग्विभाग होता है ॥ १० ॥
तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषध
नीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः ॥११॥ सूत्रार्थ:-उन भरतादि क्षेत्रोंका विभाग करनेवाले पूर्व पश्चिम चौडे हिमवत् आदि छह वर्षधरपर्वत हैं। ___ भाष्यम्-तेषां वर्षाणां विभक्तारो हिमवान् महाहिमवान् निषधो नीलो रुक्मी शिखरी इत्येते षडर्षधराः पर्वताः । भरतस्य हैमवतस्य च विभक्ता हिमवान् हैमवतस्य हरिवर्षस्य च विभक्ता महाहिमवानित्येवं शेषाः ॥
विशेषव्याख्या-पूर्वमें जो भरत, हैमवत, आदि क्षेत्र कहे हैं, उनको विभक्त अर्थात् पृथक् २ करनेवाले हिमवान् , महा हिमवान् , निषध, नील, रुक्मी, और शिखरी ये छह वर्षधर पर्वत हैं। उनमें भरत तथा हैमवतको पृथक् करनेवाला हिमवान् पर्वत है । और हैमवत तथा हरिका विभाग करनेवाला महाहिमवान् । ऐसे ही शेष भी कोई भी विष्कंभ नहीं आता । और वह बाह्य तथा आभ्यन्तरके विष्कंभ प्रमाण असत्य नहीं हो सक्ते, क्योंकि शास्त्रमें पढा है । और आर्षानुसारी गणितशास्त्रवेत्ता परिहाणिको और प्रकारसे वर्णन करते हैं। मेरु ऊपर एकलक्ष योजन ऊंचा है । अपचयन्यूनतादिसे रहित सहस्र योजन भूमिमें गड़ा हुआ अदृश्य है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org