________________
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । द्वीप इक्षुवरोदः समुद्रः नन्दीश्वरो द्वीपो नन्दीश्वरवरोदः समुद्रः अरुणवरो द्वीपोऽरुणवरोदः समुद्र इत्येवमसङ्खयेया द्वीपसमुद्राः स्वयम्भूरमणपर्यन्ता वेदितव्या इति ॥
विशेषव्याख्या-जम्बूद्वीपसे आदि लेके द्वीप और लवणसमुद्रसे आदि लेके समुद्र ये शुभनामवाले हैं । इसका यह तात्पर्य है कि लोकमें जितने शुभनाम हैं, उन नामोंसे ये युक्त हैं । शुभ नामवाले, इसका यह तात्पर्य है कि इनके शुभ ही नाम हैं अशुभ नहीं । द्वीपके अनन्तर समुद्र और समुद्रके अनन्तर द्वीपसमुद्र हैं, इसप्रकार यथासंख्य समझना चाहिये । यथा, -जम्बूद्वीप नामक द्वीप है, और उसके अनन्तर लवणोद नामक समुद्र है; उसके पश्चात् पुनः धातकीखण्ड नामक द्वीप है, उसके अनन्तर पुनः कालोद नामक समुद्र है; पुनः पुष्करवरद्वीप है, पुनः पुष्करोदनामक समुद्र है; पुनः वरुणवरद्वीप है, पुनः वरुणोद नामक समुद्र है; पुनः क्षीरवर नामक द्वीप है और क्षीरोद समुद्र है; पुनः घृतवर नामक द्वीप है, पुनः घृतोद नामक समुद्र है; पुनः इक्षुवर नामक द्वीप है, पुनः इक्षुवरोद नामक समुद्र है; पुनः नन्दीश्वर नामक द्वीप है, पुनः नन्दीश्वरवरोद समुद्र है; पुनः अरुणवर नामक द्वीप है, और पुनः उसके अनन्तर अरुणवरोद नामक समुद्र है; इस प्रकार असंख्येय द्वीप समुद्र स्वयम्भूरमण पर्यन्त जानने चाहिये ॥ ७ ॥
द्विर्दिर्विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ८॥ सूत्रार्थ—ये द्वीप समुद्र द्विगुण २ विष्कंभके धारण करनेवाले हैं, तथा पूर्व पूर्व द्वीप समुद्रको पर २ के द्वीपसमुद्र चारों ओरसे घेरे हैं, और सब ही वलयाकार (वृत्ताकार ) हैं।
भाष्यम्-सर्वे चैते द्वीपसमुद्रा यथाक्रममादितो द्विद्धिर्विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः प्रत्येतव्याः । तद्यथा। योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य वक्ष्यते । तद्विगुणो लवणजलसमुद्रस्य । लवणजलसमुद्रविष्कम्भाहिगुणो धातकीखण्डद्वीपस्य । इत्येवमास्वयम्भूरमणसमुद्रादिति ॥
विशेषव्याख्या-प्रथम जम्बूद्वीपसे आदि लेके द्वीप और समुद्र सब यथाक्रमसे द्विगुण २ व्यास प्रमाण होते गये हैं, और पर २ के द्वीप समुद्र पूर्व २ द्वीप समुद्रको चारों ओरसे घेरे हैं । और वलय (कटक अर्थात् कडे ) के आकारके हैं, ऐसा जानना चाहिये । जैसे; एक सहस्रयोजन अर्थात् एकलक्ष योजन विष्कंभ ( विस्तार ) जम्बूद्वीपका कहेंगे। और जम्बूद्वीपसे द्विगुण विष्कंभ लवणसमुद्रका है; और लवणसमुद्रके विष्कंभसे द्विगुण विष्कंभ धातकीखंडका है । इस प्रकार पूर्व २ से पर २ द्विगुण विष्कंभवाले द्वीप समुद्र स्वयंभूरमण पर्यन्त जानने चाहिये ।
पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणः । सर्वे पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणः प्रत्येतव्याः । जम्बूद्वीपो लवणसमुद्रेण परिक्षिप्तः । लवणजलसमुद्रो धातकीखण्डेन परिक्षिप्तः । धातकीखण्डद्वीपः कालोदसमुद्रेण परि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org