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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
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नरकों में उत्पन्न नहीं होते । क्योंकि नरक गतिके साधक अधिक आरंभ और अधिक परिग्रह आदि उन देव और नारकियोके नहीं हैं । और नरक गतिसे निकलकर नरक जीव देवताओं में भी उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि देवगतिके कारण सराग संयमादि हैं, वे भी उनके नहीं हैं । किन्तु नरकयोनि के नियतकालके पश्चात् छूटनेपर वे मनुष्यो में अथवा तिर्यग्योनिमें उत्पन्न होते हैं । और कोई २ आदिकी तीन भूमियोंमेंसे निकलने के पश्चात् मनुष्यत्व पाकर तीर्थंकर पदवीको भी प्राप्त हो सक्ते हैं । तथा चार भूमियोंसे निकलकर निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं । पांच भूमियोंसे संयम, छह भूमियोंसे संयमासंयम और सम्यग्दर्शन तो सातों नरक भूमियों से निकलकर प्राप्तकर सकते हैं ।
द्वीपसमुद्रपर्वतदतडागसरांसि ग्रामनगरपत्तनादयो विनिवेशा बादरो वनस्पतिकायो वृक्षतृणगुल्मादिः द्वीन्द्रियादयस्तिर्यग्योनिजा मनुष्या देवाश्चतुर्निकाया अपि न सन्ति । अन्यत्र समुद्घातोपपातविक्रियासाङ्गतिकनरकपालेभ्यः । उपपाततस्तु देवा रत्नप्रभायामेव सन्ति नान्यासु । गतिस्तृतीयां यावत् ॥
नरक भूमियों में द्वीप, समुद्र, पर्वत, हद, तड़ाग, सर ( छोटे तलाब ) ग्राम, नगर, और पत्तनादिकोंकी रचना तथा स्थूल वनस्पतिकाय, वृक्ष, तृण, लतादिक और द्वीन्द्रियादि जीव, तिर्यञ्च, मनुष्य और चतुर्निकायके देव, ये कोई भी नहीं होते' । परन्तु समुद्धातमें प्राप्त, उपपात जन्मवाले, वैक्रियकशरीरधारी, साङ्केतिक और नरकपाल अर्थात् महापापी इन सबको छोड़के । अर्थात् ये नरकभूमियों में जा सक्ते हैं । यहां इतना और भी जानना आवश्यक है, कि उपपातरूप जन्मसे जो देव होते हैं, वे रलप्रभा भूमिमें हैं, अन्य भूमियोंमें नहीं । और इनका गमन तृतीयभूमि पर्यन्त हो सक्ता है, अधिक नहीं ।
यच्च वायव आपो धारयन्ति न च विश्वग्गच्छन्त्यापश्च पृथिवीं धारयन्ति न च प्रस्पन्दन्ते पृथिव्यश्चाप्सु विलयं न गच्छन्ति तत्तस्यानादिपारिणामिकस्य नित्यसन्ततेर्लोक विनिवेशस्य लोकस्थितिरेव हेतुर्भवति ॥
और जो वायुर्जेलको धारण करते हैं, वे चारों ओर नहीं वहते अर्थात् साधारण वायुके समान इधर उधर नहीं जाते । और जल जो पृथिवीको धारण करते हैं, वे भी इधर उधर कहीं फिसल कर नहीं चलते । और पृथिवी भी जलमें नहीं डूबती, और ऐसा होनेमें अनादिकालसे पारिणामिक तथा नित्य प्रवाहरूपसे जो लोकोंकी रचना है, उसमें लोकस्थिति ही कारण है ।
१ रत्नप्रभाके तुल्य नीचेकी छह भूमियोंमें द्वीप समुद्रादि नहीं हैं । २ पूर्व जन्म के मित्र । ३ सप्तभूमियोंमें जो घनाम्बुवताकाश प्रतिष्ठा है उसकी व्यवस्था कहते हैं ।
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