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पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला लेख,सिद्धान्त परीक्षा भाग-१ पृ.४७-४९, दि. जैन सिद्धान्त दर्पण भाग १ पृ. ४१-४३ (पं.मक्खन लाल जी शास्त्री मोरेना),दि.जैसि.द.२/१५६ कालम-१, पृ.१६९ कालम-II, पृ.१७४ कालम१ दि.जै.सि.द.२/२३० कालम II, २/३०७ II, २/३०९ II, ३/७ कालम II वही ग्रन्थ ३/२५ कालम II,३/६३ II, ३/१५२ II, ३/२३३ II, आदिग्रन्थ ।
इन २० प्रमाणों से सिद्ध है कि महिलाओं को क्षायिक सम्यक्त्व नहीं होता। आगे क्षायिक सम्यक्त्व सम्बन्धी दो विशिष्ट प्ररूपणाएँ पृथक् से की जाती हैं । यथा -
क्षायिक समकिती उत्तमभोग भूमि में ही
उत्पन्न हो, ऐसा नहीं है यों तो क्षायिक सम्यक्त्वी देवगति में ही उत्पन्न होते हैं, परन्तु बद्धायुष्क क्षायिक सम्यक्त्वी भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं । इस विषय में ऐसा एकान्त नहीं है कि बद्धायुष्क क्षायिक समकित यदि भोग भूमि में उत्पन्न हो तो उत्तम भोगभूमि में ही उत्पन्न होगा। बद्धायुष्क क्षायिक सम्यक्त्वी भोगभूमि में उत्पन्न होता हुआ उत्तम मध्यम व जघन्य, सभी भोगभूमियों में उत्पन्न होता है । धवल, जयधवल, महाधवल, तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार तथा महापुराण आदि ग्रन्थ इसके साक्षी हैं । उसे ही नीचे लिखा जाता है - (१) मारणांतिय उववाद परिणत काउलेस्सिय असंजदसम्माट्ठिींहि तिण्णं
लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरिय / लोगस्स / संखेज्ज / दिभागो, अड्ढाइज्जादो असंखेज्जगुणोकाउलेस्साए सह असंखेज्जेसु दीवेसु पदम पुढवीए च उप्पज्जमाणखइयसम्माट्ठिी छुत्त खेत्तग्गहणादो ।
(धवल ४/२९४) अर्थ - मारणांतिक समुद्घात तथा उपपाद परिणत कापोत लेश्यावाले असंयत सम्यग्दृष्टि जीवों ने सामान्य लोक आदि तीन लोकों का असंख्यातवाँ भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवाँ भाग और ढाई द्वीप से असंख्यात गुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । इसका कारण यह है कि यहाँ पर असंख्यात द्वीपों में तथा प्रथम पृथ्वी में उत्पन्न होनेवाले क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा स्पृष्ट क्षेत्र का ग्रहण किया है। (२) पुव्वं तिरिक्ख मणुस्सेसु आउअंबंधिय पच्छा सम्मत्तं घेत्तूण दंसणमोहणीयं
खविय बद्धाउवसेण भोगभूमिसंढाण - असंखेज्जदीवेसु उप्पण्णेहि भवसरीरग्गहण पढमसमए वट्टमाणेहि ओरालिय-मिस्सकायजोग असंजदसम्माट्ठिीहि अदीदकाले फोसिदतिरिय लोगस्स सखेज्जदि भागुवलंभा। (धवल ४/२६५)
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