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पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला कथन सार - इसी तरह हम गर्भजों का भी जघन्य आयु बंध अन्तर्मुहूर्त. प्रमाण है तथा एक समय अधिक आयुबंध दूसरा आयुबंध का विकल्प है। दो समय अधिक आयुबंध आयुबंध का तीसरा विकल्प है । इस तरह एक समय बढ़ाते-बढ़ाते तीनपल्य तक के विकल्प आयुबंध के कहने चाहिए । बस, मनुष्यों में आयुबंध के स्थान इतने ही हैं, इनसे एक भी अधिक नहीं। परन्तु जीने के स्थिति विकल्प तो इनसे भी अधिक हैं
और वह आधिक्य मात्र कदलीघात से प्राप्त होता है । जघन्य आयुबन्ध के नीचे असंख्यात ऐसे विकल्प प्राप्त करना चाहिए । इसीलिए कहा है कि गर्भजों में निर्वृत्तिस्थानों(आयुबंध स्थानों) से भी जीवनीयस्थान विशेषाधिक हैं । (धवल १४/३५८ = -३५९)
सार- उक्त समस्त कथन से स्पष्ट है कि औपपादिक तथा असंख्यात वर्षायुष्क को छोड़कर शेष में यानी कर्मभूमिज मनुष्य तिर्यंचों में जघन्य आयुबन्ध से कम स्थिति प्रमाण भी तिर्यंच मनुष्य जीते हैं तथा ऐसा कम स्थिति वाला जीवन वे कदलीघात प्राप्त करते हैं, मात्र कदलीघात से न कि आयुबंध से, अन्यथा निर्वृत्तिस्थानों (बंधस्थानों) तथा जीवनीय स्थानों के समान होने का प्रसंग आएगा जो कि अनिष्ट है। ऐसी स्थिति में पण्डित मोतीचन्द जी का यह कहना कि “कदलीघात ४० वर्ष प्रमाण ही आयु शेष कर देता है इसका अर्थ यह हुआ कि पूर्व भव में उसने चालीस वर्ष भी कोई बंध निश्चित किया है", हास्यास्पद है।
एक और प्रमाण - धवल पु.१० में आयु का उत्कृष्ट द्रव्य किसके होता है यह प्ररूपणा पृ. २२५ से प्रारम्भ हुई है। इसमें बताया है कि जो जीव पूर्वकोटि की आयु वाला हो तथा पूर्वकोटि का त्रिभाग शेष रहने पर ही प्रथम अपकर्ष में (मात्र एक ही, प्रथम अपकर्ष में) उत्कृष्ट योगादि से आयु बांधता है तथा फिर जलचरों में जाकर उत्पन्न होता है और वहाँ पर्याप्तियों को अन्तर्मुहूर्त में पूर्ण कर, फिर अन्तर्मुहूर्त बाद कदलीघात करता है । तथा कदलीघात ऐसे करता है कि जितनी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयु व्यतीत हुई उसकी आधी यानी अर्द्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयुनिषेक छोड़ कर शेष समस्त कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण आयुनिषेकों को एक समय में सदृशखण्ड पूर्वक कदलीघात से घात कर नीचे के अर्द्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण शेष स्थिति में निक्षिप्त कर देता है तथा उसी समय परभव की आयु का बंध भी उत्कृष्ट योगादि से करता है । (धवल १०/२४४) इस जीव के आयुबंध-काल के अन्तिम समय में आयु का उत्कृष्ट द्रव्य पाया जाता है (पृ. २४३ सूत्र ४६) यह उत्कृष्ट आयु द्रव्य कुछ कम दो बंधककाल प्रमाण होता है । (धवल १०/२५४)
अब यहाँ यह देखना है कि यदि जलचरों में आकर कदलीघात करने वाला जीव
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