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________________ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला ५५ (२) क्षुल्लक भवग्रहण सबसे स्तोक है । (धवल १४/३६१-६२) यहाँ क्षुल्लकभव ग्रहण से घात क्षुल्लक भवग्रहण अर्थात् कदलीघात से प्राप्त जघन्य जीवन स्वरूप जानना चाहिए। यह घात क्षुल्लक भवग्रहण सभी अपर्याप्त जीवों के समान ही होता है । इससे सूक्ष्मएकेन्द्रिय अपर्याप्त की जघन्य निर्वृत्ति ( = जघन्य आयु बंध) संख्यातगुणा है । .. पृ.३६३ (३) पृष्ठ ३६४ पर लिखा है कि एकेन्द्रिय जीव के निवृत्तिस्थान (आयुबन्धों विविध विकल्प) संख्यात गुणे हैं। (आयुबंधों के कुल विकल्प = उत्कृष्ट आयु बंध (२२ हजार वर्ष) - जघन्य आयु बंध (अन्तर्मूहूर्त) = अन्तर्मुहूर्त कम २२ हजार वर्ष प्रमाण होते हैं ।) इन आयुबंध विकल्पों से उसके जीवनीय स्थान विशेषाधिक होते हैं। (जीवनीय स्थान = आयु के वे स्थिति-विकल्प जिन-विकल्पों में जीव जी सकता है) ऐसे ही कथन पृ. ३६५ आदि पर भी हैं । 1 उक्त तीन बिन्दुओं में से प्रथम बिन्दु का स्पष्टीकरण किया जाता है किसी सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याय ने जघन्य आयु बंध किया वह अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । इससे कम आयु बंध सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याय के नहीं होता, यह अभिप्राय है । किसी ने इससे एक समय अधिक प्रमाण आयुबंध किया । यह दूसरा आयुबन्ध स्थान यानी निर्वृत्ति स्थान है । इससे दो समय अधिक आयु बंध करने पर तीसरा निर्वृत्ति स्थान प्राप्त होता है । इस प्रकार तीन समय अधिक, ४ समय अधिक इत्यादि के क्रम से निरन्तर आयुबन्ध के स्थान (यानी विकल्प) बाईस हजार वर्ष की आयु प्राप्त होने तक प्राप्त करने चाहिए। इतने एकेन्द्रिय में आयुबंध के विकल्प हैं यह कथनाभिप्राय है। इनसे ऊपर आयु बंध के विकल्प नहीं प्राप्त होते, क्योंकि एकेन्द्रियों में २२ हजार वर्ष से अधिक आयुबंध नहीं होता । इस प्रकार इतने आयुबन्ध स्थान प्राप्त हुए। (धवल १४ / ३५३) परन्तु जीवनीय स्थान इनसे भी अधिक होते हैं । यथा - उपर्युक्त समस्त आयुबंध विकल्पों प्रमाण तो एकेन्द्रिय जीव जीते ही हैं । परन्तु इनकी जो जघन्य बद्ध आयु है उससे नीचे प्रमाण आयु भी ये जीव कदलीघात क्रिया द्वारा प्राप्त कर लेते हैं और उतनी आयु बंध को कभी भी प्राप्त नहीं होती और ऐसे कदलीघात द्वारा प्राप्त जीवन विकल्प असंख्यात होते हैं, क्योंकि वे संख्यात आंवलियों प्रमाण होते हैं । कहा भी है- जहण्णणिव्वत्तिद्वाणादो हेट्ठा जीवणियद्वाणाणि चेव, णणिव्वट्टिट्टाणाणि (= आउअबंधट्ठाणाणि), (तत्य) आउ अबंधवियप्पाभावादो । (धवल १४ / ३५५) जघन्य आयुबंध स्थान के नीचे जीवनीय स्थान ही हैं, निर्वृत्तिस्थान नहीं, क्योंकि वहाँ आयु बंध के विकल्पों का अभाव है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004020
Book TitleDhaval Jaydhaval Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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