________________
४९
पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला वहाँ साता का ही होता है । (ओक्कड्डणा करणं पुण अजोगिसत्ताण जोगिचरिमो त्ति गो.क. ४४५) जयधवला १४/३४-३५ में लिखा है- नरकायु का बंध तो मिथ्यावृष्टि गणस्थान में ही होता है, पर अपवर्तना असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक होती है । तिर्यंचायु का बंध सासादन गुणस्थान तक होता है पर अपवर्तना (अपकर्षण) आदि अवस्थाएँ संयतासंयत गुणस्थान तक होती हैं । मनुष्यायु का बंध तो चौथे गुणस्थान तक ही सम्भव है पर अपकर्षण (अपवर्तना) सयोग केवली गुणस्थान तक बन्ध बिना भी होता रहता है । देवायु का बंध तो सातवें गुणस्थान तक ही होता है, पर अपवर्तन उपशान्त कषाय नामक ग्यारहवें गुणस्थान तक होता है। मूल वाक्य इस प्रकार हैंणिरयाउअस्स बंधकरणभुक्कड्डणाकरणं च मिच्छाइट्ठिम्मि अत्थि ।
उवरिमगुणट्ठाणेसु णत्त्यि । ओवट्टणकरणं जाव असंजट्सम्भाइट्ठिति । तिरिक्खाउअस्स बंधणकरणं...जाव सासणसम्माइट्ठिति।....सेसाणं (ओवट्टणादीणं) संजदासंजदम्मि वोच्छेदो। मणुस्साउअस्स बंधणकरणं उक्कड्डणं च जाव असंजदसम्माइट्ठि त्ति।... ओकडणा जाव सजोगिचरिमसमओ त्ति । देवाउअस्स बंधण करणं. जाव अप्पमत्तो त्ति।... ओकड्डणकरणं संतं च जाव उवसंतकसाओ त्ति।
(जयधवला १४/३४-३५) इस प्रकार यह अत्यन्त स्पष्ट हो जाता है कि आयुओं के बंध रुक जाने के बाद भी ऊपर के गुणस्थानों में उन-२ आयुओं का अपकर्षण (अपवर्तन) तो होता है । अत: मात्र उत्कर्षण के लिए उसी प्रकृति का बंध भी जरूरी है, अपकर्षण के लिए नहीं । ज.ध. १४/३६ ८७ । अत: पण्डित जी बिन्दु (क) में चूक गए हैं । १०० वर्ष की आयु बांधने वाले के यदि परिणामों वश आय का अपकर्षण (अपवर्तन) कराना है तथा ६० प्रमाण करना है तो उसे नवीन तौर से आयु बंध करना आवश्यक नहीं, वह उन १०० वर्षों की आयु का अपवर्तन करके, छेद करके, धात करके उसे ६० प्रमाण रख सकता है । बद्ध आयु के न्यूनीकरण (अपवर्तन) के लिए पुन: नवीन आयुबंध करने की जरूरत ही नहीं। क्योंकि अपकर्षण या अपवर्तन में बन्ध की जरूरत नहीं होती। (देखें जैनगजट दि.२७.८.६४ पृ. IX बरतनचन्द्र मुख्तार)
पण्डित जी अपकर्षण (अपवर्तन) की परिभाषा समझने में भी भूलकर गए हैं। अधिक स्थिति बंध के बाद हीन स्थिति बंध होना अपकर्षण नहीं है । जैसा कि पं. जी ने लिखा है। बल्कि किसी स्थितिबंध के होने के आवली बाद उस बंधे कर्म की स्थिति -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org