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________________ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला अनुभाग का घटाना अपकर्षण है, न कि न्यून स्थिति बंध होना। ___ (ख) ख बिन्दु में पण्डित जी जो लिखते हैं वैसा संसार भर के किसी भी दिगम्बर जैन साहित्य या सिद्धान्तग्रन्थ में नहीं लिखा है । पण्डित जी के मतानुसार तो जितने वर्ष आयु में अकालमरण होता है उतनी ही आयु उसने द्वितीय आयुबंध में बांधी है, तो फिर वह अकालमरण ही कैसा? सिद्धान्त शिरोमणि करणानुयोग । प्रभाकर रतनचन्द मुख्तार लिखते हैं कि अमुक जीव की अपमृत्यु अवश्य होगी, इस प्रकार का कोई आयुबंध नहीं होता । पं. रतनचन्द्र मुख्तार व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ. ५६२ तथा अकालमरण (शास्त्री परिषद् प्रकाशन जून १९६५) पृष्ठ २:३ आदि (२) सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र सि. शास्त्री लिखते हैं कि - श्रद्धेय पं. मोतीचन्द जी कोठारी यहाँ चूक गए हैं। उन्होंने अकालमरण विषयक जो यह पूर्व में दो बार आयुबंध होने का कथन (प्ररूपण) किया है, वह मिथ्या है । 'को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे ।' (दि. ११.३.८८, हस्तिनापुर प्रवास) (३) पूज्य १०५ आर्यिका विशुद्धमति माताजी (त्रिलोकसार आदि की टीकाकार) लिखती हैं जो आपने (जवाहरलाल जी ने) लिखा है वह सत्य है । मोतीचंद जी द्वारा यह बड़ी भूल हुई है । आप पं. मोतीचन्द्र जी को इस विषय में अवश्य लिखें। (दि. २८.१०.८७ भीलवाड़ा प्रवास) (ग) बिन्दु ग में पण्डित ने जो लिखा है वह गलत है । मूल वाक्यों में तो इस प्रकार लिखा है नहीं। मूल संस्कृत वाक्यों में तो मात्र इतना लिखा है कि “बध्यमान आयु का अपवर्तन तो अपवर्तना घात कहलाता है, कदलीघात नहीं । क्योंकि उदीयमान(भुज्यमान) आयु का अपवर्तन ही कदलीघात कहलाता है ।" पं. जी ने यह मूल संस्कृत वाक्य कहाँ से लिए, यह भी नहीं लिखा । अस्तु, ये वाक्य कर्मकाण्ड की जीवतत्त्व प्रदीपिका गाथा ६४३ (ज्ञानपीठ प्रकाशन भाग २ पृ. ९८३) टीका से यहाँ लिए गए हैं। इस कथन से यह निष्कर्ष निकालना कि “बध्यमान आयु स्थिति में जैसे अपवर्तन होता है वैसे ही भुज्यमान में भी अपवर्तन" यह कथंचित् ठीक भी कहा जा सकता है। पर इससे यह सिद्धान्त बनाना कि “भुज्यमान आयु में कदलीघात के लिए बध्यमान में भी वैसी आयु का दूसरी बार बंध होना चाहिए", हास्यास्पद है। बिन्दु (घ व ङ) में पण्डित जी ने लिखा है कि श्रेणिक राजा ने क्षायिक सम्यक्त्व होने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004020
Book TitleDhaval Jaydhaval Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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