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________________ ४७ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला भी अपवर्तन होता है । (पृ.३११) (घ) राजा श्रेणिक ने जो नरकायु की ३३ सागर की स्थिति बांधी थी वही उसका पूर्व बंध था और क्षायिक सम्यक्त्व की उत्पत्ति होने पर (यानी सम्यक्त्व अवस्था में) ८४००० वर्ष की जो स्थिति आय की बांधी थी वह श्रेणिक के आयु का दूसरा बंध है । (पृ.३१२ व ३१९) सातवें नरक की बंध तथा पहले नरक का बंध भगवान् को ज्ञात था। (पृ.३१३) (ङ) यह अपवर्तन (अकालमरण) पूर्व भव में बद्ध आयु की उसी (पूर्व) भव में होने __ वाले अपकर्षण के बिना नहीं हो सकता । (पृ.३१४) (च) औपपादिक आदि जीवों की, पूर्व भव में उत्तर भव (देवायु आदि) की आयु का और वर्तमान पर्याय की आयु का अपवर्तन नहीं होता । (पृ.३१४) (छ) इस समय की निश्चिति, पूर्व-भव में इस भव की आयु स्थिति का जो बंध होता है उस स्थिति बंध के कारण होती है । इस उत्तर भव की आयु की स्थिति का जो पूर्व भव में बंध होता है उस बंध के अनन्तर परिणाम के कारण इस भव की स्थिति का जो फिर से (दूसरी बार) बंध होता है वह स्थितिबंध पूर्व से न्यून होता है । इसी न्यून स्थिति (बंध) का नाम अपसरण है । परिणाम विशेष के कारण पूर्वभव में फिर से जो न्यून स्थितिक बंध हुआ था उसके अनुसार ही पूर्वकाल में प्रथमबद्ध आयुकर्म की स्थिति के अनुसार उत्तर भववर्ती जीव की आयु होती है । दूसरे आयुबंध की न्यूनस्थिति के अनुसार, भुज्यमान आयु के काल में, पूर्व निश्चित प्रथम आयु की पूर्णता की अन्यूनता का अभाव पूर्वक, पूर्वभव में द्वितीय बार जो न्यून आयु बंधी थी उसके अनुसार उत्तर भव में जीव का मरण होता है। यह आयु कर्म की न्यून स्थिति पूर्ण होने पर जो मरण होता है उसी का नाम अकालमरण या कदलीघात है । इस मरण का काल भी नियत है और वह पूर्वभव में द्वितीय बार किए गए आयुस्थिति बंध द्वारा नियत किया गया है (पृ.३१७) (ज) क्षायोपशमिक ज्ञान वाला भी पूर्व भव में किए गए आयु कर्म के दो बंध, अपकर्षण : तथा उत्तर भव में होने वाली उदीरणा इनको सर्वज्ञोपज्ञ आगम द्वारा ही जानता है । (पृ.३२०) (झ) एक जीव ने पूर्व भव में ८० वर्ष की स्थिति बांधी, फिर ४० वर्ष की भी बांधी। जिस पूर्व भव में आयु कर्म की स्थिति बांधी जाती है उसी भव में स्थित्यपकर्षण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004020
Book TitleDhaval Jaydhaval Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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