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पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला १.विशेष - एक मत के अनुसार सर्वार्थसिद्धि में जघन्य आयु पल्य के असंख्यातवें
भाग कम ३३ सागर है तथा उत्कृष्ट आयु ३३ सागर है । यथा - तेत्तीस उवहि उवमा पल्लांसंखेज्ज भागपरिहीणा सव्वट्ठसिद्धिणामे मण्णंते केई अवराऊ ॥
(तिलोयपण्णत्ति = ८/५१४ पृ.५६६
(महासभा प्रकाशन) तथा लोकविभाग १०/२३४) २. विशेष - यद्यपि, देव नारकी, चरमशरीरी तथा असंख्यात वर्षायुष्क जीवों की
अकालमृत्यु नहीं होती, ऐसा सर्वजन प्रचलित तथा बहु-आगम-उपलब्ध वचन है । (त.स.२२/५३ स.सि. आदि) परन्तु प्राचीन शास्त्र संतकम्मपंजिया पृ.७८ में यह लिखा है कि इस विषय में दो मत है। किन्हीं आचार्यों के मत से अकालमरण भोगभूमि में होता है तथा किन्हीं आचार्यों के मत से भोगभूमि में अकालमरण नहीं होता है । इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने वहाँ उदाहरण भी दिया है । यथा - तिपलिदोवमाउगं बंधिय कमेण तत्थुप्पज्जिय सव्वलहुमाऊगं घादिय तथ्य
कदलिघादस्स पढमणिसेयग्गहणादो। तं कुदो। भोग भूमीए कदलिघादमत्थि त्ति अभिप्पाएण। पुणो भोग भूमीए आउघस्स घादं णत्थि त्ति भणंत आइरियाणमभिप्पाएण...
(धवल १५ परि पत्र ७८ सम्पादक ___- सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री एवं बालचन्द्र सि. शा.) तीन पल्योपम प्रमाण आयु का बंध करके क्रम से वहाँ उत्पन्न होकर सर्वलघु काल में आय का घात करके वहाँ कदलीघात का प्रथम उदीयमान निषेक का ग्रहण करना चाहिए। प्रश्न - भोगभूमि में अकालमरण कैसे सम्भव है। उत्तर - भोगभूमि में अकालमरण होता है, ऐसा कहने वाले आचार्यों के अभिप्राय से यह कहा है । पुन: भोगभूमि में आयु का घात नहीं होता, ऐसा कहने वाले आचार्यों के मतानुसार मनुष्यायु का उत्कृष्ट प्रदेशोदय ऐसे होगा कि ....
(पृ.७८ सतकर्मदनिका) धवल पु.१५ पृ. २९९ में भी भोगभूमि में अकालमरण का स्पष्टत: समर्थन है ।इस अकाल मरण से वहाँ विविध आयु विकल्प भी बन जाते हैं।
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