________________
पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला ___ सारत: एकमत के अनुसार देवकुरु उत्तरकुरु में भी आयु के जघन्य व उत्कृष्ट भेद होते हैं।
इस प्रकार मनुष्य व तिर्यंच आयु सम्बन्धी संक्षिप्त विवेचन किया गया। लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य व तिर्यंच की आयु क्षुद्रभव प्रमाण होती है । (गो.जी. १२३-२५)
देवों में भवनवासियों में जघन्य आयु १० हजार वर्ष तथा उत्कृष्ट आयु १ सागर है । सौधर्म युगल में साधिक २ सागर, सानत्कुमार युगल में साधिक ७ सागर, ब्रह्मब्रह्मोतर युगल से लेकर प्रत्येक युगल में आरणअच्युत युगल तक क्रमश: १० सागर, १४ सागर १६ सागर, १८ सागर, २० सागर तथा २२ सागर, प्रमाण उत्कृष्ट आयु होती है । १०, १४,१६, १८ सागर को “साधिक" कहना चाहिए। प्रथम ग्रैवेयक में २३ सागर उत्कृष्ट आयु, दूसरे में २४ इस तरह १-१ सागर बढ़ते-२ अन्तिम ग्रैवेयक में ३१ सागर उत्कृष्ट आयु होती है । अनुदिश ९ विमानों में ३२ सागर तथा अनुत्तर ४ विमानों में ३३ सागर उत्कृष्ट आयु होती है । सर्वार्थसिद्धि में आयु उत्कृष्ट व जघन्य भेद रहित मात्र ३३ सागर ही होती है।
सौधर्म ऐशान में जघन्य आयु साधिक १ पल्य है । पूर्व-पूर्व स्वर्ग की उत्कृष्ट स्थिति आगे-२ के स्वर्ग की जघन्य स्थिति होती है । जैसे सौधर्मयुगल की उत्कृष्ट स्थिति साधिक २ सागर है । उसी में १ समय मिला देने पर वह सानत्कुमार युगल की जघन्य आयु होती है। इसी तरह सानत्कुमार की उत्कृष्ट स्थिति साधिक ७ सागर में १ समय मिला देने पर वही ब्रह्म ब्रह्मोत्तर स्वर्ग की जघन्य आयु स्थिति होती है। इसी तरह आगे भी कहना चाहिए।
व्यंतरों में जघन्य आयु १० हजार वर्ष तथा उत्कृष्ट आयु साधिक १ पल्य है । अर्थात् कोई प्रेतात्मा व्यंतर बन कर हमें पीढ़ियों तक कष्ट दे सकता है क्योंकि वह तो कम से कम १० सहस्र वर्ष आयु वाला होता है जबकि हम तो प्राय: १०० वर्ष भी पार नहीं कर पाते । कष्ट निवारण हेतु जिनदेव की शरण ही अमोघ शस्त्र है। ___ ज्योतिषी देवों में जघन्य आयु साधिक १/८ पल्य तथा उत्कृष्ट आयु साधिक १ पल्य है। सभी लौकान्तिक देवों की आयु उत्कृष्ट जघन्य विकल्प रहित ८ सागर होती
(सर्वार्थसिद्धि ४/२८-४२)
१.जो आचार्य भोगभूमि में अकाल मरण मानते हैं (धवल १५/२९९ तथा संतकम्मपंजिया पृष्ठ ७८) उनके मतानुसार
भी भोगभूमि में विविध आयु विकल्प बन जाते हैं ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org