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________________ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला ३७ णवरि यदवद्विदरुवं परिहीणं हाणिवडिहिं । सुसमसुसमम्मि सा हाणीए विहीणा एदास्सिं णिसहसेलेय । अवसेसवणाओ... अवसेसवण्णणाओ(६) जंबूदीवपण्णत्ति २/११८-१२४ तथा ३/२३६ तथा लोक विभाग ५/१२ में भी शाश्वती भूमि को लक्ष्य कर ३, २,१ पल्य आयु ही बताई, जघन्य उत्कृष्ट भेद सम्भव नहीं होने से कहे ही नहीं। (७) सम्यग्दृष्टि यदि भोग भूमिज तिर्यंचों में जाते हैं तो वहाँ उनकी जघन्य आयु पल्य के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट ३ पल्य होती है । (जयधवल २/२६१) यह जो कहा है वह भी भरतैरावत की होनेवाली अस्थायी भोगभूमियों की अपेक्षा ही कहा प्रतीत होता है । (धवल १४/३५९) इस प्रकार शाश्वत भोगभूमियों में जघन्य-उत्कृष्ट भेदरहित १,२,३ पल्य(जघन्य मध्यम व उत्तम भोग भूमि में) ही आयु बन्ध तथा आयुभोग होता है, यह स्थिर नियम जानना चाहिए। (८) लेकिन इन सब के बावजूद भी धवल पृ.१४ पृ.३९८-९९ के अनुसार शाश्वत भोगभूमि में भी जघन्य व उत्कृष्ट आयु होने का उपदेश (एकमत के अनुसार) दिया गया है । वहाँ दोनों मत लिखे गए हैं। एकमत के अनुसार उत्तम भोगभूमि में तीन पल्य ही स्थिति होती है, यह कहा है । (उत्तरकुरु देवकुरु मणुआ सव्वे ति पलिदोवमठिदिया चेव) तथा दूसरा मत “अथवा" करके दिया है। वह निम्न प्रकार हैसमयाहिय दुपलिदोवमे आदि कादूण जाव समऊणतिण्णिपलिदोवाणि त्ति द्विदिवियप्पपडिसेहटुं वा तिपालिदोवमग्गहणं। ण च सव्वट्ढसिद्धिदेवाउअं व णिवियप्पं तदाउअं, तप्परुवयसुन्तवक्खाणाणमणुवलंभादो। अर्थ - एकसमय अधिक दो पल्य से लेकर एक समय कम तीन पल्योपम तक के स्थिति विकल्पों का (इस विवक्षित - प्रकृत मनुष्य के लिए) प्रतिषेध करने के लिए सूत्र में “तीन पल्य की स्थिति वाले", इस पद का ग्रहण किया है । अत: सर्वार्थसिद्धि के देवों की आयु जिस प्रकार निर्विकल्प (जघन्य - उत्कृष्ट भेद रहित) होती है उस प्रकार वहाँ (यानी उत्तरकुरु देवकुरु) की आयु निर्विकल्प नहीं होती, क्योंकि इस प्रकार की प्ररूपणा करने वाला सूत्र और व्याख्यान उपलब्ध नहीं होता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004020
Book TitleDhaval Jaydhaval Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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