________________
२३
(४)
पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला
जीवन भर तक यानी असंख्यात करोड़ वर्षों तक सम्यक्त्वी रहा ऐसा सप्तम पृथ्वी का नारकी भी अंतिम अन्तर्मुहूर्त में नियम से मिथ्यात्वी हो जाता है। साता का बन्ध होने पर असाता का बन्ध नहीं होता। आताप प्रकृति का उदय सूर्य विमान में स्थित बादर पृथ्वी कायिक के ही पाया
जाता है। (७) गतिबंध तो सदा होता है, पर आयु बंध सदा नहीं होता। (८) आनतादि स्वर्गों में एक मनुष्यायु का ही बंध होता है। महाधवल पु. २:(१) मनुष्यों में असंज्ञी भेद नहीं होता। (२) असंज्ञी मात्र तिर्यंच ही होते हैं। (३) आयुकर्म में स्थिति के अनुपात से आबाध नहीं होती।
वैक्रियिक मिश्र काय योग, कार्मण काययोग, अनाहारक, उपशम सम्यक्त्व, मारणान्तिक समुद्धात तथा सम्यग्मिथ्यात्व में आयुबंधनहीं होता । पृ. २८२,३०३
(तथा पु. ४ म.ब.) (५) औदारिक मिश्र काययोग में आयुबंध मात्र लब्ध्यपर्याप्तकों के ही होता है। प.
(४)
(६) अन्य किसी भी मिथ्यादृष्टि के ३१ सागर प्रमाण देवायु का बंध नहीं होता। परन्तु
परमविशुद्धियुक्त निर्ग्रन्थ द्रव्यलिंगी साधु के ही होता है । पृ. २७५ (७) असंज्ञी के भी तीनों वेदों का उदय होता है (असंज्ञी पंचेन्द्रिय के) पृ. ३०४ (८) लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य के एकमात्र काय योग होता है । पृ. महाबन्ध पु. ४:(१) जीव में विद्यमान कषाय परिणाम स्पर्श गुण का ही कार्य करता है, अत: स्पर्श गुण
के अभाव में भी जीव से पुद्गल का सम्बन्ध हो जाता है । (स्निग्ध, रूक्ष) (२) घाती कर्मों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध साकारोपयोग के बिना नहीं होता। (३) ऐशान (दूसरे) स्वर्ग तक एकेन्द्रिय आदि का बंध होता है। (४) सब अपर्याप्तों की काय (= भवसमूह) स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । द्रष्टव्य पु. ६ व७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org