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पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला
(७) सर्वार्थसिद्धि के देव भी छह मास से ज्यादा काल तक सुखी नहीं रह सकते । पृ.
६२, ६८
(८) सातवें नरक का नारकी यावज्जीवन असाता का उदय वाला रह सकता है । पृ. ६२
(९) नरक में कभी सभी नारकी असाता के उदय से दुःखी हों तथा एक ही नारकी सुखी (साता का उदय वाला) हो, यह संभव है । पृ. ७२
(१०) संयमासंयम को पालनेवाले तिर्यंचों में उच्चगोत्र पाया जाता है । पृ. १५२ (११) कोई भी प्राणी ब्रह्माण्ड में अन्तर्मुहूर्त से अधिक काल तक सो नहीं सकता तथा (पृ. ६२) तथा अन्तर्मुहूर्त से अधिक काल तक जाग भी नहीं सकता पृ. ६८
धवल पु. १६ :
(१) तीर्थंकर प्रकृति के सत्व वाले नारकी असंख्यात हैं। पृ. ३८५, ४०१ (महाधवल १/३१५)
(२) पुण्य के बन्ध के समय सत्ता के कुछ पाप का भी पुण्य रूप संक्रमण होता है । पाप के बंध के समय सत्ता के कुछ पुण्य का भी पापरूप परिणमन हो जाता है । पृ.
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३४०
(३) केवलज्ञानावरण का जघन्य अनुभाग भी सर्वघाती होता है । सारत: आंशिक केवलज्ञान कभी भी प्रकट नहीं होता, पूर्ण ही प्रकट होता है । पृ. ५३८-३९
(४) सम्यग्दृष्टि प्रशस्त कर्मों का अनुभाग नहीं घातता । पृ. ३८० (द्रष्टव्य ध. १२/१८) (५) सकल प्रशस्त कर्मों का अनुभाग काण्डक घात मिथ्यात्वी ही करता है । पृ. ४०२ (६) एक ही भव में दो बार उपशम श्रेणि चढ़ना शक्य है । पृ. ४६५
महाधवल पु. १ :
(१) धवल महाधवल, जयधवल तथा विजयधवल ग्रन्थ हैं । प्रस्ता. पृ. २
(२) ज्ञानचेतना में ज्ञातृत्व भाव, कर्म चेतना में कर्तृत्व भाव तथा कर्मफल चेतना में भोक्तृत्व भाव है । (प्रस्ताव .)
(३) सम्यक्त्वी के जघन्य अवस्था में ज्ञान चेतना के सिवाय कर्म तथा कर्मफल चेतनाएँ भी पाई जाती हैं । इसी से वह किन्हीं प्रकृतियों का अबन्धक तथा किन्हीं का बंधक
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होता है । प्रस्ता. पृ. ८३
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