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पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला (४) एक निगोद कभी अकेला नहीं रहता । (पृ. ८ प्रस्ता.) (५) सूक्ष्मनिगोद जल, स्थल तथा आकाश में सर्वत्र हैं । पृ. ११३, १४९ (तथा मु.ब.पु.
७:५) पंचेन्द्रिय की अपेक्षा एकेन्द्रियों के कषाय अनन्तगुणीहीन तथा योग असंख्यातगुणा-हीन होता है । पृ. ४२७ .. एक प्रमाण दूसरे प्रमाण की अपेक्षा नहीं करता, क्योंकि यदि ऐसा न माना जाए
तो अनवस्था दोष का प्रसंग आवेगा । पृ. ३५०, ५०७ (आदि) (८) शुद्ध परमाणु सदाकाल अनन्त रहते हैं । (१४९,५४४,१५५,१७९, १८४,१८५,
२१२, २२२ आदि) (९) सूक्ष्म, पृथ्वी, जल, अग्नि व वायु : कायिक जीव सर्वलोक में व्याप्त हैं। (१०) कभी भी ऐसा काल तो आता ही नहीं है कि जब कोई एक भी शुद्ध परमाणु द्रव्य
इस ब्रह्माण्ड में न हो । (यानी शुद्ध परमाणु द्रव्य का कभी विरह नहीं होता) पृ.
१५१ (११) मन:पर्ययज्ञानी भी विक्रिया करते हैं । पृ. ३१३ (१२) तैजसशरीर खाए गए अन्नपान को पचाता है तथा रोनक का कारण भी होता है ।
पृ. ३२८, (और भी देखें राज वा.पृ. ३४४ ज्ञानपीठ) धवल १५:(१) भोगभूमि में भी कदलीघात सम्भव है । (पृ.७८ परिशिष्ट सत्कर्मपंजिका) यह एक
आचार्य का कत है । (मूल पृ. २९९) (२) नरक आदि गतियों में तत् तत् आयुकर्म की उदीरणा निरन्तर होती है । पृ. ६३ (३) नरक में निरन्तर यावज्जीवन असाता की उदय उदीरणा भी सम्भव है। (४) भोगभूमि के स्त्री के भी वज्रवृषभनाराचसंहनन ही होगा। पृ.६५ (५) प्रशस्त कर्मों की भी गुणश्रेणिनिर्जरा होती है । पृ. ३००-३०१ : ३०९ (तथा
जयधवल १६/१४९, १४/१७४) आदि) (६) सम्यक्त्व प्रकृति सम्यक्त्व का एक देश घात करती है । पृ. ११ (द्रष्टव्य ज.ध.
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