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पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला (२) पर्यायों का समूह द्रव्य है । अतीत व अनागत पर्यायों का जीव में अपने स्वरूप
से पाया जाना सम्भव है । पृ. २४० (३) करुणा जीव का स्वभाव है । पृ. ३६२ (४) ग्यारहवें व बारहवें गुणस्थान में प्रत्येक में प्रथम व द्वितीय दोनों शुक्ल ध्यान
सम्भव हैं। पृष्ठ ८१ (५) सम्यक्त्व का उत्कृष्ट काल साधिक ९९ सागर है । (भिन्न मत) पृ. ११० (६) नरक में छह पर्याप्ति से पूर्व सम्यक्त्व नहीं हो सकता । १११ (७) परमाणु भी सर्वथा निरंश नहीं है । पृ. १९, २४ (८) धवल अध्यात्म ग्रन्थ है । पृ. ३६-३७ (और भी देखें धवल १५/३ तथा ज.ध.
६/१५३) (९) सिद्धान्त ग्रन्थों में भाव मार्गणाओं की ही प्ररूपणा की गई है । पृ. ३७ (१०) केवली के साता का अनुभाग बन्ध तो होता है, पर अत्यल्प । अत: उसे गिनती में
नहीं लिया। पृ. ४९ (११) शरीर के शोषण को उपवास नहीं कहते । पृ. ५५ (१२) धर्मध्यान दशम गुणस्थान तक होता है । पृ. ७४ (१३) पहले पहल अन्तिम पूर्व का ज्ञान भी किसी जीव को हो सकता है, ऐसा नहीं कि
उत्पाद (प्रथम) पूर्व ही का सर्वप्रथम ज्ञान हो । पृ. २७३ (१४) उपदेश के बिना भी द्वादशांग का ज्ञान सम्भव है । पृ. २३९ (१५) जीव के सब गुणों के अविभाग प्रतिच्छेद संख्या में समान नहीं होते । पृ. २६३
(और भी देखें गो.जी. भाग-१ पृ. २१८ ज्ञानपीठ तथा त्रि.सा.७१) धवल १४:(१) सूक्ष्मनिगोदों में भी अकालमरण (कदलीघात) होता है । पृ. ३५६ (२) देवकुरू उत्तरकुरू में आयु ३ पल्य की ही होती है। दूसरे मत के अनुसार
समयाधिक २ पल्य प्रमाण जघन्य आयु से लेकर ३ पल्य तक सभी आयु-विकल्प
वहाँ होते हैं । पृ. ३९८-९९ (३) एक निगोद शरीर में जन्मे हुए सब जीवों की आयु समान ही हो, ऐसा कोई नियम
नहीं है । पृ. ४८७, २२७, २२९
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