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________________ पं.फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला व्याख्यान-१ पण्डित जी के धवल, जयधवल तथा महाधवल का वर्ण्य विषय धवला टीका का मूल आधार ग्रन्थ षटखण्डागम है । इसकी टीका “धवला” है । यह संस्कृत मिश्रित प्राकृत भाषा में दि. ८-१०-८१६ ई. बुधवार को पूरी हुई थी। इसका परिमाण ७२,००० श्लोक प्रमाण है । भगवद् वीरसेन स्वामी ने यह टीका लिखी थी। वर्तमान में इसका हिन्दी अनुवाद ७००० पृष्ठों में, १६ भागों में हुआ है। इस कार्य में गुरुजी पं. फूलचन्द्र जी को करीब २० वर्ष (सन् १९३८ से १९५८) लगे । अन्य भी विद्वान् आपके साथ इस पुनीत कार्य में थे । सभी के योग से यह कार्य पूर्ण हुआ । परन्तु सर्वाधिक योग आपका ही रहा। धवला के वर्तमान में उपलब्ध १६ भागों में से प्रथम छह भागों में षटखण्डागम के जीवस्थान नामक प्रथम खण्ड की टीका है। जिनमें प्रथम पुस्तक में गुणस्थानों तथा मार्गणास्थानों का विवरण दिया गया है । गुणस्थान तथा मार्गणा सम्पूर्ण धवल, जयधवल, महाधवल का मूल हार्द है । द्वितीय भाग में गुणस्थान जीवसमास पर्याप्ति आदि २० प्ररूपणाओं द्वारा जीव की परीक्षा की गई है। तीसरी पुस्तक द्रव्यप्रमाणानुगम है, जिसमे यह बताया गया है कि ब्रह्माण्ड में सकल जीव कितने हैं । इसमें भिन्न-भिन्न अवस्थाओं, गतियों आदि में भी जीवों की संख्याएं गणित शैली से सविस्तार तथा सप्रमाण बताई गई हैं । चौथी पुस्तक में क्षेत्र स्पर्शन कालानुगम द्वारा बताया गया है कि सकल ब्रह्माण्ड में जीव निवास करते हुए, विहार आदि करते हुए कितना क्षेत्र वर्तमान में तथा अतीत में छूते हैं या छू पाए हैं । गुणस्थानों तथा मार्गणाओं में से प्रत्येक अवस्था वाले जीवों का आश्रय कर यह प्ररूपण किया गया है। कालानुगम में मिथ्यादृष्टि आदि जीवों की काल-अवधि सविस्तार प्ररूपित की गई है । पाँचवें भाग-अन्तर भाव अल्पबहुत्वानुगम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004020
Book TitleDhaval Jaydhaval Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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