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________________ ३८ .... आत्मानुशासन . व्याधि तिनि करि पीड़ित है। हीन आचार जे अभक्ष्य भक्षण अयोग्य आचरण तिनिकरि दुराचारी है। आपका ठिगनहारा है । तूं जन्म मरणके मुख में पड्या है, जराकरि ग्रसित है । वृथा उमत्त होय रह्या है। कहा आत्मकल्याणका शत्रु है अकल्याण विर्षे बाँधी है वांछा तैं। भावार्थ-संसारविर्षे शरीरका ग्रहणकरि जीव जन्म धरै है। सो संसारका मूल कारण कुबुद्धि, अज्ञानी जीवनिकै अनादि तें है। तारौं देह विर्षे आत्मबुद्धिकरि नवे नवे शरीर धरै है सो नारकीका शरीर तो महा दुःखरूप अनेक रोगमई है । अर देवनिका शरीर रोग रहित है, परंतु मनकी चिंताकरि महा दुःखरूप है। अर मनुष्य तियं चनिका शरीर अनेक रोगनिका निवास, त्रिदोषरूप सप्त धातु मई महा अपवित्र है । तिनिमैं मनुष्यका शरीर महा मलिन आधि कहिये मनकी व्यथा, अर व्याधि कहिये शरीरकी पीड़ा, तिनि करि युक्त महा दुराचारी, जीवनिका घाती, निर्दय परिणामी, असत्यवादी, पर धनका हरणहारा, पर दाराका रमणहारा, परदाराका रमणहारा, बहु आरंभ परिग्रही, पर विघ्नसंतोषी, ऐसे देह कहा नेह करै ? तूं क्रोध, मान, माया, लोभके योग” महा अविवेकी अपणां बुरा आप करै है। आत्मघाती आपकू आप ठिगै है। अनेक जन्म मरण किये अर अब करनेंकू उद्यमी है, जरा करि ग्रसित है तौऊ परलोकका भय नाहीं, सो कहा उन्मत्त भया है। अकल्याणविर्षे प्रवा सो कहा आपका बैरी ही है। अब गुरुका उपदेश मानि देहतैं नेह तजि विषय कषायतें पराङ मुख होहु । अनाचार तजि, आत्मकल्याणकरि । बंधके कारण रागादि परिणाम तिनिका अभाव करि । आगे कहै हैं कि आत्माके हितकारी नाँही ए विषय तिनि विर्षे तूं अनुरागी भया है। परंतु वांछित विषयकी प्राप्ति बिना केवल क्लेश ही भोगवै है शार्दूल विक्रीडित छंद उग्रग्रीष्मकठोरधर्मकिरणस्फूर्जद्गभस्तिप्रभैः संतप्तः सकलेन्द्रियैरयमहो संवृद्धवृष्णो जनः । अप्राप्याभिमतं विवेकविमुखः पापप्रयासाकुलस्तोयोपान्तदुरन्तकर्दमगतक्षीणोक्षवत् क्लिश्यते ॥५५॥ अर्थ-यह प्राणी विवेकतै पराङ मुख, इन सब इन्द्रियनिकरि तप्तायमान भया । बढ़ी है तृष्णा जाकै सो मनवांछित वस्तुनिकू न पायकरि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004018
Book TitleAtmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1983
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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