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आत्मानुशासन . अर्थ-पिता तो पुत्रकौं अर पुत्र पिता कौं बहुत प्रकार ठिग करि मोहतें सुखका है अंश जामैं ऐसा राजपद पावनैको वांछे है। अहो बड़ा आश्चर्य है मूरख लोग मरण जन्मरूप डाढ़कै मध्य प्राप्त भया निरंतर शरीरकों हरता जो यहु यम ताकौं नाहीं अवलोकै है। ___ भावार्थ-जैसे कोई सिंहकी डाढविषै आया पशु सो अपना शरीरकौं चाबता जो सिंह ताको तौ विचारै' नाहीं, अर क्रीड़ा करनेका उपाय करै । तहाँ बड़ा आश्चर्य हो है। तैसै जन्म मरण दशा है सो यमकी डाड़ है। ताकै बीच कालविषै प्राप्त भया यह लोक सो अपना आयुकौ हरता जो काल ताका तौ विचार ही करै नाहीं अर राज्यादिक पद लेनैका नानां उपाय करै है सो यह बड़ा आश्चर्य है। ऐसा मूर्खपनाको छोड़ि यमका चितवनि राखि विषयवांछा करनी योग्य नाहीं है। - आगे विषयनिविषै मोहित जो जीव तांकै पुत्रका मारनां आदि अकार्यकी.प्रवृत्ति हो है ताविषै कारण कहा है सो कहै हैं:
अन्धादयं महानन्धो विषयान्धीकृतेक्षणः ।
चक्षुषाऽन्धो न जानाति विषयान्धो न केनचित् ।।३५॥ _ अर्थ-विषयनि करि अन्ध किया है-सम्यग्ज्ञानरूपी नेत्र जाका ऐसा यह जीव है सो अन्ध तैं भी महाअंध है। इहाँ हेतु कहै हैं । अंध है सो तो नेत्रनिही करि नाहीं जानै है अर विषयकरि अंध है सो काहूकरि भी न जाने हैं।
भावार्थ-अंधपुरुषकौं तौ नेत्रनिही करि नाहीं सूझै है। मन करि बिचारना, कानां करि सुनना इत्यादि ज्ञानतौ वाकै पाईए है। बहुरि जो विषयवासनाकरि अंध भया है ताकै काह द्वारै ज्ञान न होइ सके है। विषयनिविषै दुःख होता नेत्रनि करि दीसै, मनकरि विचारै, भासै, सीख दे वाला सुनावै इत्यादि ज्ञान हो के कारन बनैं परंतु विषय वासनाकरि ऐसा अंध होइ काहूको गिनै नाहीं। ता” अंध होना निषिद्ध है। तिसत भी विषयनिकरि अंध होनो अति निषिद्ध जानना । ___ आगे कहै हैं किंचित् विषय की वांछा करि तिनिकै अथि तेरी प्रवृत्ति है सो यह वांछा तौ सब ही प्राणीनिकै है परंतु या वांछा करि कौनकै मनवांछित पदार्थकी सिद्धि भई ? काहूकै ही न भई ।
१. ताका तो ते विचार ही करै नाहीं मु० ३४-१३. ...२. काहू करि न जानै ज० उ.० ३५-३. .
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