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आत्मानुशासन मिथ्यात्वसहित क्रियाका बहुत भार वहै तो भी महिमा न पावे । अर सम्यक्त्व सहित क्रियाका किंचित् भी भार वहै तो बहुत महिमा योग्य
आगें ऐसै सम्यक्त्व आराधना विषै प्रवर्ते है ऐसा जो आराधकताका स्वरूपकौं कहि ताका भयकों दूरि करता संता सूत्र कहै है
आर्या छंद मिथ्यात्वातंकवतो हिताहितप्राप्त्यनाप्तिमुग्धस्य । वालस्येव तवेयं सुकुमारैव क्रिया क्रियते ॥१६॥
अर्थ-मिथ्यात्वरूप महारोगसंयुक्त अर हित-अहितकी प्राप्ति-अप्राप्तिविषै मूर्ख ऐसा बालक समान जो तू सो तेरी यहु सुकुमाल ही क्रिया करिये है।
भावार्थ हे शिष्य ! जैसे रोगी हित-अहितकौं न जानता बालकताका कोमल ही प्रतीकार करिये, तैसें तू मिथ्यात्वसहित हित-अहितकौं नाहीं पहचानता अज्ञानी है बालक समान । सो तुझको कोमल धर्मका साधन उपदेशिए है । इहाँ ऐसा रहस्य है-पुष्ट होइ वा हित प्राप्ति अहित-नाशका लोभ होइ वा बड़ी अवस्था होइ तौ कठोर साधन भी साधै। तीनों न होइ तब उस” सधता भासै सोई साधन बताइए है। तैसें श्रद्धानवन्त होइ वा मोक्षकी प्राप्ति बंधका नाशका इच्छुक होइ, वा बड़ी पदवीका धारक होइ तौ कठिन धर्म भी साधै। तीनों तेरै नांहीं, ताते तुझि” सधता भास है सोई सम्यक्त्वादिरूप कोमल धर्मका साधन बतावै है। __ आगे अब चरित्र आराधनाका विचारका अनुक्रमकौं करता आचार्य सो तिसका आराधक कौं योग्य ऐसी ही सुगम अणुव्रत चरित्र आराधनां कों दिखावता संता सूत्र कहै है-~~
आर्या छंद विषयविषमाशनोत्थितमोहज्वरजनिततीव्रतृष्णस्य । निःशक्तिकस्य भवतःप्रायःपेयाधुपक्रमःश्रेयान् ॥१७॥
अर्थ-विषयरूपी विषम भोजनौं उत्पन्न भया मोहरूपी ज्वर जा' करि उत्पन्न भई है तीव्र तृष्णा जाकैं, ऐसा शक्ति रहित भया जो तूसो तेरे पेय आदि अनुक्रम है सोई कल्याणकारी है । १. अज्ञानी है, सो ज० पू० १६-६ । २. इच्छुक होइ तो कठिन मु०, १७-२१ ३. ज्वर जाकै ऐसा शक्ति रहित ज० उ० १७-६ ।
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