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सम्यग्दर्शनके दस भेद अवगाहि करि जो निपजी सो अवगाढदृष्टि है। यह अवगाढसम्यक्त्व जाननां । बहरि केवलज्ञानकरि अवलोक्या पदार्थविषै श्रद्धान सो इहाँ परमावगाढदृष्टि प्रसिद्ध है । यह परमावगाढ़सम्यक्त्व जाननां । ऐसे ए दश भेद कहे।
भावार्थ-इहाँ दश भेद सम्यक्त्वके कहे। तहाँ वीतराग वचननि ही तें श्रद्धान होइ सो आज्ञासम्यक्त्व है। मोक्षमार्गके ही श्रद्धानतें होइ सो मार्गसम्यक्त्व है। उत्तम पुरुषनिका पुराणादिक सुनने” श्रद्धान होइ सो उपदेशसम्यक्त्व है। मुनिका आचार सुननेतें श्रद्धान होइ सो सूत्रसम्यक्त्व है। बीज गणितादि करि करणानुयोग के निमित्त श्रद्धान होइ सो बीजसम्यक्त्व है। संक्षेपपनै पदार्थनिका श्रद्धाननै होइ सो संक्षेपसम्यक्त्व है। द्वादशांगकों सुनि श्रद्धान होइ सो विस्तारसम्यक्त्व है । कोई दृष्टान्तादिरूप' पदार्थ श्रद्धान होइ सो अर्थ सम्यक्त्व है । श्रुतकेवलीके श्रद्धान होइ सो अवगाढ़सम्यक्त्व है। केवलज्ञानीके श्रद्धान है सो परमावगाढ़ सम्यक्त्व है । ऐसै एक सम्यक्त्वके अन्य निमित्त” दश भेद जाननँ । ___इहाँ प्रश्नः-जो चारि प्रकार आराधनाविषै सम्यक्त्व आराधना पहले काहै तैं करिए है ऐसे पूछ कहै हैं--
आर्या छंद शमबोधवृत्ततपसां पाषाणस्येव गौरवं पुंसः ।
पूज्यं महामणेरिव तदेव सम्यक्त्वसंयुक्तम् ॥१५।। अर्थ--पुरुष आत्मा ताकै मंदकषायरूप उपशम परिणाम, शास्त्राभ्यासरूप ज्ञान, पापत्यजनरूप चारित्र, अनशनादिरूप तप इनिकों महंतपणों है सो पाषाणका बोझ समान है । विशेष फलका दाता नांहीं । बहुरि सोई सम्यक्त्वसंयुक्त होइ तो महामणिका गुरुत्ववत् पूजनीक है। बहुत फलका दाता महिमायोग्य है।
भावार्थ-जैसै पाषाणकी अर मणिकी यद्यपि एक जाति है, तथापि कांतिकै विशेषः पाषाणका बहुत भार वहै तौ भी महिमा न पावै । अर मणिका स्तोक भार वहै तौ बहुत महिमा योग्य होइ । तैसैं मिथ्यात्व और सम्यक्त्वसहित क्रियानिकी यद्यपि एक जाति है तथापि अभिप्रायके विशेषतें
१. उपदेशसम्यक्त्व है । बीजगणितादि ज० पू० १४ ७ २. करुणानुयोग ज० पू० १४-७ ३. दृष्टादिरूप मु० १४-५
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