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विषय सूची
पतन होनेवाले शरीरमें अपना आग्रह रखना व्यर्थ है. इससे अनिश्वर पदकी प्राप्ति सम्भव दुर्बुद्धिजनोंका लक्षण
७१-७२ जीवन-मरणका लक्षण
७३ उससे संसारी जोवकी रक्षा होना सम्भव नहीं
७४-७५ संसारमें विधिसे बलवान् कोई नहीं, वही सब कुछ
७६-७८ मृत्युसे रहित स्थानादिमें जीवोंका रहना योग्य स्त्रीका शरीर प्रीतिके योग्य नहीं काने गन्नेके समान मनुष्य शरीरको जानकर उसे धर्मका साधन बना सारभूत करनेका निर्देश मरनेकी शंका और जीनेकी आशाके साथ कितने कालतक यह जीव इस शरीरमें टिक सकता है बन्धुजनोंको आत्महितमें सहकारी मानना व्यर्थ
८-८४ धनरूपी ईंधनसे तृष्णारूपी अग्निके भड़कनेपर भी अज्ञानी जीव इसमें शान्ति मानता है
८५ वृद्धावस्थामें धवल बालोंके मिससे मानों बुद्धिकी शुद्धि ही निकल रही है, अतः विचारा परलोकके हितमें कैसे विचार कर सकता है संसारमें पड़े हुए जीवको मोहरूप मगर-मच्छसे संरक्षण मिलना कठिन है घोर तपश्चरणका उदाहरणपूर्वक निर्देश
८८ बालपन आदि तीनों पनोंकी वृत्तिमें धर्माराधनके क्षण कम ८९-९१ विषयी प्राणीकी प्रवृत्तिमें 'परिचितेष्ववज्ञा' का कोई मतलब नहीं भ्रमरके समान व्यसनीकी दशा होती है । सुबुद्धिको पाकर प्रमाद करना अविवेकका लक्षण है धर्मकी उपेक्षाकर धनीके पीछे लगना योग्य नहीं कृष्णराजके भाण्डागारके तुल्य धर्मका स्वरूप सबको गम्य नही शरीरको आपदाका स्थान बता यतिजन सबको संसारसे विरक्त करते हैं
९७-९८ गर्भ और जन्मके दुःखसे डरकर प्राणी मरणसे भय करता है इस प्राणीकी अजाकृपाणीय और सुखके लिये अन्धकवर्तकीयकी सी दशा हो रही है
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