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आत्मानुशासन
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अन्धेके रस्सी वलने तथा हाथीके स्नान करनेके समान गृहस्थाश्रमकी व्यर्थताका समर्थन सोदाहरण आशाग्रहके निग्रह करनेपर ही सुखकी प्राप्तिका निर्देश तृष्णायुक्त सुख सुखाभास ही है उदाहरणद्वारा दैवकी लीलाका समर्थन नदीके उदाहरणद्वारा न्यायपूर्वक धनसे सम्पत्ति नहीं बढ़नेका समर्थन यथार्थ धर्म, सुख, ज्ञान और गतिका निर्देश वर्तमान कष्टकी अपेक्षा परलोकके लिये कष्ट सहना हितकर आन्तरिक शान्तिके लिये राग-द्वेषका परिहार करना आवश्यक यही तृष्णा नदीके पार होनेका उपाय पुनः पुनः भोगे गये भोगोंको भोगकर भी तृष्णा शान्ति के बिना आन्तरिक शान्ति असम्भव भावी जीवनकी चिन्ता किये बिना कामी पुरुष क्या क्या निन्द्य कार्य नहीं करता नश्वर विषयोंको आँख खोलकर देखनेका निर्देश अतीत दुःखोंको भले ही भूल जाय, वर्तमान दुःख और उनके कारणोंका तो स्मरणकर, उनकी प्राप्तिमें कितना कष्ट है ५३ अपनी स्थिति समझे बिना ही यह प्राणी विषयाभिलाषा क्यों करता है ५४ कीचड़में फसे हुए प्यासे बैलके समान तृष्णाकी वृद्धि केवल संक्लेशका कारण होती है ईंधनके बिना अग्निके समान विषयोंके बिना भी तृष्णाका शान्त होना असम्भव मोहनिद्राके वशीभूत हुए प्राणीको दशा बन्दीगृहके समान शरीरमें प्रीति करना व्यर्थ है न कोई शरण है और न कोई मित्र इत्यादि जानकर प्रमादके बिना धर्मका सेवन करना ही श्रेयस्कर दीपककी शिखाके समान नष्ट होनेवाले भोगोंकी आशा करना व्यर्थ ६२ अग्निसे वेष्ठित एरंडमें फसे हुए कीड़ेके समान शरीरमें फसकर तू व्यर्थ दुःख भोग रहा है। इन्द्रियोंके दास होनेकी अपेक्षा तू ही उन्हें दास बनाकर शाश्वत सुखकी उपासनामें लग
६४ संसारमें धनी व निर्धन कोई भी सुखी नहीं है
६५ स्वाधीन सुखके कारण तपस्वियोंकी प्रशंसा
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