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आत्मानुशासन
वर्तमान पर्यायके संधारण करनेके लिये श्वासोच्छ्वासको लेते रहना आवश्यक है।
डा० हुकमचन्द भारिल्ल जयपुरने 'पण्डित टोडरमल व्यक्तित्व और कृतित्व' नामसे एक शोधप्रबन्ध लिखा है। उससे मालूम पड़ता है कि इनका वास्तव्य काल वि० सं० १७७३-७४ से लेकर १८२३-२४ तक रहा है । अधिकतर समय इनका साहित्य साधनामें ही व्यतीत हुआ है । विशेष जानकारीके लिये डा० भारिल्ल द्वारा लिखित 'पण्डित टोडरमल्ल व्यक्तित्व और कृतित्व' ग्रन्थका अवलोकन करना चाहिये।
फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री दिनांक २५-८-८३
वाराणसी
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