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लोकमें महानताकी सीमा नहीं
१४९ न उपज्या । महाकायक्लेश कीया तऊ मान गए बिना मुक्त न भए । यह तुच्छ मात्रहू मान महा मोटी हानि करै है । तातें मान त्याज्य है । तन धनरूप संपदा यौवन राजलक्ष्मी इनिका गर्व करै सो ये सब क्षण भंगुर हैं। अर आत्मा तो निश्चयकरि सिद्ध समान है। त्रैलोक्यका आभूषण है, ताकै मान काहेका ?
भावार्थ-मान ही मोक्षका विघ्नकारी है। बाहबली सारिखे तपस्वी बलवान् विवेकी सूक्ष्म संज्वलन मानके उदयकरि वर्ष पर्यंत केवल न पावते भये । मान कणिका गई तब केवल उपज्या । - आगें कहै हैं कि जो विवेकी गुणकी महंतता जानै है तिनिकू तुच्छ मात्र हू मान करना उचित नांही यह दोय श्लोकमैं दिखावे हैं
शार्दूलविक्रीडितछंद सत्यं वाचि मतौ श्रुतं हृदि दया शौयं भुजे विक्रमे लक्ष्मीर्दानमनूनमर्थिनिचये मार्गो गतिनिधुते । येषां प्रागजनीह तेऽपि निरहङ्काराः श्रुतेगोचराः चित्रं संप्रति लेशितोऽपि न गुणास्तेषां तथाप्युद्धताः ।।२१८॥
मालिनीछंद वसति भुवि समस्तं सापि संधारितान्यैः उदरमुपनिविष्टा सा च ते वा परस्य । तदपि किल परेषां ज्ञानकोणे निलीनं
वहति कथमिहान्यो गर्वमात्माधिकेषु ।।२१९॥ अर्थ-या लोकविर्षे पूर्व महा महत्पुरुष भए । जिनकै वचनविर्षे सत्य, अर शास्त्रविर्षे बुद्धि, हृदयविष दया, अर भुजानिवि शूरवीरता पराक्रम, अर लक्ष्मीका जाचकनिके समूह विर्षे पूर्ण दान, अर निर्वृत्ति मार्गविर्षे गमन, जिनमैं ए गुन होते भये तोऊ अहंकार रहित शास्त्रविर्षे गाए हैं । परन्तु यह बड़ा अचिरज है अवार या कलिकालविर्षे लेशमात्र हू गुण नांही तोऊ तिनिकै अति उद्धतता है, महा गर्वमैं छकि रहे हैं।
भावार्थ-पूर्वं चतुर्थ कालविर्षे बड़े सत्यवादी शूरवीर, दयावान्, दातार, महाविरक्त भए तोऊ गर्वका लेश न भया । अर अबार रंचमात्र गुण नाहीं, तथापि उद्धत हैं, गर्ववंत हैं । इह बड़ा अचिरज है।
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