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________________ १५० आत्मानुशासन ... अर्थ-गर्व करना झूठा है। गर्व तौ तब करै जब आप” कोऊ अधिक न होइ, सो एकसू एक अधिक हैं। प्रत्यक्ष देखो या पृथ्वीविर्षे समस्त बसै हैं । सबका आधार पृथ्वी है । सो त्रैलोक्यकी भूमिघनोदधि घनवात तनुवात इनि तीन बातवलानिकै आधार है। पृथ्वी अर वातवलय आकाशके उदरमें हैं। सो अनंता आकाश केवलीके ज्ञानके अंशमैं लीन भया है। एक सू एक अधिक हैं। तातें जगतविर्षे आपतैं बहुतनिकू अधिक जानि कौन गर्व करै ? विवेकी कदापि गर्व न करै। ___ भावार्थ-एकतै एक अधिक हैं। सब पृथ्वीकै आधार, पृथ्वी पौंनकै आधार ए वातवलानिक, ते वातवलय आकाशकै आधार सो आकाश समस्त ज्ञा-मैं माय रह्या है। अर संसारी जीवनिमैं विभूति करिएकसू एफ अधिक हैं। जीवत्वकरि सब समान हैं । आगें मापाचारकै योग” जीवका अकल्याण होइ है सो तीन श्लोकनि में दिखावै हैं शिखरिणीछंद यशो मारीचीयं कनकमृगयामलिनितं हतोऽश्वत्थामोक्त्या प्रणमिलघुरासीद्यमसुतः । सकृष्णः कृष्णोऽभूत् कपटबटुवेषेण नितरामपि छद्माल्पं तद्विषमिव हि दुग्धस्य महतः ।।२२०।। मेयं मायामहागान्मिथ्याघनतमोमयात् । यस्मिन् लीना न लक्ष्यन्ते क्रोधादिविषमाहयः ।।२२१।। - वसन्ततिलकाछंद प्रच्छन्नकर्म मम कोऽपि न वेत्ति धीमान् ध्वंसं गुणस्य महतोऽपि हि मेति मंस्थाः। कामं गिलन् धवलदीधितिधौतदाहं गूढोऽप्यबोधि न विधु स विधुन्तुदः कैः ।।२२२।। ____ अर्थ-अल्प हू कपट महा मोटे गुणनिङ हते है, जैसै घने दूधकू कणिकामात्र हू विष दूषित करै है। देखो मारीच जो रावणका मंत्री ताका जस कपटकरि कनक सग होनेरौं मलिन भया। अर राजा युधिष्ठिरका अति निर्मल यश सो तिनके मुख” यह वचन निकस्या जो “अश्वत्थामा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004018
Book TitleAtmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1983
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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