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आत्मानुशासन
भावार्थ——अतत्त्व श्रद्धानरूप मिथ्यात्व भावका नाम तो मोह है । अर इष्ट अनिष्ट पदार्थनिक मानि तिनिविषै प्रीति अप्रीति करनीं तिनिका नाम राग द्वेष है । सो अतत्त्व श्रद्धान ही तैं पदार्थ इष्ट अनिष्ट भासे हैं । तातें जैसें वृक्षके जड़ अर अंकुराका मूल कारण बीज है तैसें राग द्वेषका मूल कारण मोह जाननां । बहुरि जैसें कोई जड़ अंकुराको दग्ध कीया चाहै सो वाकै बीजकौं दग्ध करै । तैसें जो रागद्वेषका नाश कीया चाहै सो मोहका नाश करै । मोहका नाश भएं उनका नाश सहज ही हो है । सम्यग्दृष्टीके मोहका नाश भए पीछे कदाचित् रागद्वेष रहे भी है तो, जैसें उपाडे रूखकी जड़ अर अंकुरा केतैक काल हरे रहै, परंतु शीघ्र सूखेंगे, तैसें ते रागद्वेष शीघ्र नाशकौं प्राप्त होहिंगे । बहुरि कोई मिथ्यादृष्टिी के मोहका सद्भाव होतैं रागद्वेष थोरे भी बाह्य प्रकटै तो जैसें बीज होते जड़ अंकुरे थोरे भी बाह्य दीसें, परंतु शीघ्र बधेंगे तैसें रागद्वेष शीघ्र वृद्धिकों प्राप्त होहिंगे । तातैं रागद्वेषका मूल कारण मोहकौं जानि तिसहीका नाश करना । सो जैसैं बीज जलावनेको कारण अग्नि है, तैसैं मोह नाशकौं कारण ज्ञान है । ज्ञानतें जीवादि तत्त्वनिका स्वरूपकौं यथार्थ जानै ती अतत्त्व श्रद्धानका नाश हो है । तातैं तत्त्वज्ञानका अभ्यासविषै तत्पर रहनां । इतना किएं सर्व सिद्धि स्वयमेव हो है -
आ सो इन रागद्वेषनिका बीजभूत मोह सो कैसा है, बहुरि जाके नाशविषै कारण कहा है, सो कहै है
पुराणो ग्रहदोषोत्थो गम्भीरः सगतिः सरुक् । त्यागजात्यादिना मोहवणः शुध्यति रोहति ॥ १८३॥
अर्थ — मोहरूपी गूमडा फोडा है सो कैसा है ? पुरातन है ' । गूमड़ा । तौ घणे कालका भया है। अर मोह अनादिकालतें भया है । बहुरि कैसा है ? ग्रह दोषतें निपज्या है । गूमडा तौ मंगलादिक खोटे ग्रह आये निपजै है । मीह है सो पर द्रव्यका ग्रहणरूप परिग्रह ताके दोषतें निपजै है । बहुरि कैसा है ? गंभीर है । गूमडा तो औंडा है । मोह है सो जाका थाह न पाइए ऐसा बड़ा है । बहुरि कैसा है ? गति सहित है । गूमडा तौ राधि, रुधरादिकक़ा गमन लीए है. मोह है सो नारकादिक गतिका सद्भाव लीए
१. गूमडा फोडा है सो पुरातन हैं ज. उ. १८३.७.
२. पर द्रव्य कारणरूप परिग्रह. ज. उ. १८३.८.
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