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________________ शरीररूपी कारागार १२७ भावार्थ-जैसैं माथनी विर्षे रई हो है, ताक रस्सीका बंधना अर खुलना यावत् पाईए है, तावत् गमनागभन होनेकरि वाकं परिभ्रमण हो है। तैसें संसारविर्षे यह जीव है ताकै नवीन कर्मका बंधनां अर पूर्व कर्मका उदय होइ करि निर्जरना यावत् पाईए है, तावत् नरकादि पर्यायनिविर्षे गमनागमन होने करि याकै परिभ्रमण पाईए है । बहुरि पूर्व कर्मका उदै होते याकै रागादिक हो है । अर रागादिक भावनितें नवीन कर्म बंध है । तातें संसारविर्षे भ्रमणका कारण रागादिक भाव जानना। .. आगै प्राणीके कर्मका खुलना है सो कोई तो भ्रमणका अर नवीन बंधका कारण है, कोई नांही है ऐसा दिखावता सूत्र कहे है मुच्यमानेन पाशेन भ्रान्तिबन्धश्च मन्यवत् । जन्तोस्तथासौ मोक्तव्यो येनाभ्रान्तिरबन्धनम् ॥१७९।। अर्थ-मंथा जो रई तिस सरीखा यह जीव ताकै खुलता जो फांसीताकरि भ्रमण अर बंध हो है । सो यह फांसी तैसे खोलनी जाकरि भ्रमण न होइ अर बंध न होई। ____ भावार्थ-जैसैं मांथनीविर्षे रई हो है ताकै रस्सीकी फांसी हो है। ताका खुलना दोय प्रकार है । एक तौ खुलना ऐसा है जाकरि नवीन बंध तो होता जाय अर माथनीविर्षे भ्रमण हो है। और एक खुलना ऐसा हो है जाकर नवीन बन्ध नाही होइ है अर माथनीवि भ्रमण भी नांही हो है। फांसीतै छटना ही हो है। तैसैं संसारविर्षे यह जीव है ताकै कर्मकी फांसी पाइए है, ताका निर्जरा होना दोय प्रकार है । एक तौ निर्जरा ऐसी हो है जाकरि नवीन बन्ध होता जाय है अर संसारविर्षे भ्रमण हो है। अर एक निर्जरा ऐसी हो है जाकरि नवीन बन्ध नाही हो है अर संसारविर्षे भ्रमण भी नांही हो है । कर्म पाशतै मुक्त हो है। सो इहां ऐसा जानना जो पूर्व बंध्या हवा कर्म काल पाइ अपना उदय रस, देइ निर्जर है, तहां सविपाक निर्जरा हो है। सो तौ नवीन कर्म बंधनेका अर संसारविर्षे भ्रमण का कारण है । बहुरि जो पर्वै बंध्या हुवा कर्म है सो धर्म साधनमैं भी अनुराग होने करि अपना उदय रस द.ए बिना ही निर्जरै है । तहां अविपाक निर्जरा हो है । सो नवीन कर्म बंधनेका अर संसारविर्षे १. यावत् नरनारकादि पर्यायनि, ज० १७८,१ २. अर बंधन होइ मु० १७९,२१ ३. उदयरस दीए बिना ही निर्जरा हो है. ज० १७०.७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004018
Book TitleAtmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1983
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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