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आत्मानुशासन
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स्त्रीको याचै सो क्षमा आदि गुण तेई तोकूं रमावनहारी स्त्री है । ऐसे तेरै सामग्री पाइए है सो अब तोकौं कहा चाहिए, तुं याचना करै । तेरी तौ दीनता रहित सर्वोत्कृष्ट वृत्ति भई है, यातें तूं याचना रहित तिष्ठि, ऐसी शिक्षा ताकौं दई है । आगैं जो याचना दिखावता सूत्र कहै है—
करै सो छोटा है, अर न करे सो बड़ा है ऐसें
परमाणोः परं नाल्पं नमसो न परं महत् ।
इति ब्रुवन् किमद्राक्षीने मौ दीनाभिमानिनौ ।। १५२ ||
अर्थ - परमाणु अन्य कोई छोटा नांही, अर आकाश अन्य कोई बड़ा नांही। ऐसैं कहता जो पुरुष है सो इनि दीन और अभिमानीनिकौं कहा न देखता भया ।
भावार्थ- परमाणुत छोटा नांही, आकाशतें बड़ा नांही, ऐसें कोई कहै है, तहां जानिए है वानें दीन अभिमानीनिकौं देखे नांही । जो दीनकौं देखता तो परमाणुतैं भी छोटा दीनकौं कहता अर अभिमानीकौं देखता तौ आकाशतें बड़ा अभिमानीकौं कहता । भाव इहां यहु है - जो याचना करनेवाला दीन पुरुष है सो धर्म वा मानादिक घटनेतें सबनितें छोटा ही है अर जाचनान करै ऐसा अभिमानी है सो धर्म वा मानादि बधनेतें सव बड़ा है । इहां प्रश्नः - जो दीनकै मानादिक घटै तहां धर्म कैसें होइ ? अद अभिमानीकै मानादिक बधै तहां धर्म कैसे होइ ? कषायनिकै अर धर्मकै तो प्रतिपक्षीपनौ पाइए है । ताका समाधान - कोई कषायकी तीव्रता कर कोई कषाय घटै तहां धर्म नांही । सो दीनकै लोभ कषायकी तीव्रताकरि मानादिक घटे है । तातें याकै धर्मं नांही, पाप ही उपजै है । बहुरि सर्व कषाय घटनेतें भ्रमकरि कोई अवस्था कषायीकी सी भासै तहां धर्म ही है । सो इहां मान कषायवालेका नाम अभिमानी नही है । लोभतें काहूकौं जाचे नांही ताका नाम अभिमानी है । सो याकै सर्व कषाय मंद होनेतें लोभकरि पापी जीवनिकों नम्रीभूत न हो है । तातैं श्रमकरि मानीसा भासै, परंतु मानी है नांही । तातैं याकै धर्म ही है । ऐसे जानि दीनता न करनी ।
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आगे पूछे है जो याचकको गौरव कहां गयो जाकरि तिस जाचककौं लघुपनौं होय, ऐसें पूछे उत्तर कहै हैं
दातुर्मन्ये
याचितुगौरवं तदवस्थौ
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कथं
संक्रान्तमन्यथा ।
स्यातामेतौ गुरुलघु तदा ॥१५३॥
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