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________________ १०४ आत्मानुशासन बहुरि ते राजा धनके अर्थ न्याय करे हैं । जामैं धन आवनेका प्रयोजन न सधै ऐसा न्याय राजा करते नांही । बहुरि यहु धन है सो आश्रमी जे मुनि तिनकै पाइए नांही । तिनिका भेष ही धनादिक रहित है । ऐसें तो इनि भ्रष्ट भए मुनिनिकौं राजा न्यायमार्गविषै चलावते नांही । बहुरि आचार्य हैं ते आपकौं विनय नमस्कारादिक करावनेंके लोभी भए । ते भूत भए जे मुनि तिनकौं नांही न्यायविर्षं प्रवर्त्ता हैं । ऐसें इस काल विषै तपस्वी जे मुनि तिनि विषै मुनिका भला आचरन जिनिकै पाईए ऐसे मुनि ते, जैसे शोभायमान उत्कृष्ट रत्न थोरे पाईए तैसें थोरे विरले पाइए है । भावार्थ—इस पंचम कालविषै जीव जड़ वक्र उपजै हैं ते दंडका भय विना न्यायविषै प्रवर्तें नांही । बहुरि दंड देनेवाले लोकपद्धतिविषै तो राजा हैं, अर धर्म पद्धतिविषै आचार्य हैं । तहां राजा तौ धनका जहां प्रयोजन सधै तहां न्याय करै, मुनिनिकैं धन नांही तातैं राजा मुनिनिपे न्याय चलावे नांहीं, जैसैं प्रवत्तैं ' तैसें प्रवतौं । बहुरि आचार्य हैं ते विनयके लोभी भए सो दंड दे नांहो । ऐसें भय विनां मुनि स्वछंद भए हैं । कोई विरले मुनि यथार्थ धर्मके साधनहारे रहे हैं । आ जे मुनि आचार्यनिकौ नांही नमें है, उनकी आज्ञामें नांही रहे हैं, अर स्वच्छंद प्रवर्तें हैं तिनि सहित संगति करनी योग्य नांही एते ते मुनिमानिनः कवलिताः कान्ताकटाक्षेक्षणैः अङ्गालग्नशरावसन्नहरिणप्रख्या भ्रमन्त्याकुलाः । संध विषयाटवीस्थलतले स्वान् क्वाप्यहो न क्षमाः मा व्राजीन्मरुदाहृताभ्रचपलैः संसर्गमेभिर्भवान् || १५० ।। अर्थ - ते ये प्रत्यक्ष मुनि नांही अर आपकौं मुनि मानें ते स्त्रीनिके जु कटाक्ष लीएं अवलोकन तिनिकरि ग्रासीभूत भए उनकरि ग्रहे हुए अंग विष लागे है बाण तिनिकरि पीडित जे हिरण तिनकै सदृश व्याकुल होत संते भ्रमण करै हैं । बहुरि विषयरूपी वनका जो स्थल भाग ता विषै कहीं आपनिकौं स्थिर राखनेकौं समर्थ न हो हैं सो पवन करि खंडित कीए बादले जैसें चपल होइ तैसैं चंचल जे ए भ्रष्ट मुनि तिनि सहित हे भव्य तूं संगतिकों भी मति प्राप्त होहु । १. धन नांही जैसे प्रवतैं म. १४९. ५, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004018
Book TitleAtmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1983
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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