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१०२ - आत्मानुशासन - अर्थ-ये दोष हैं अर तिनि दोषनिका इनि कारणनितें उपजना हो है । बहुरि ये गुण हैं अर इनि गुणनिका इनि कारणनितें उपजना हो है। ऐसे निश्चै करनहारा' जो जीव त्यजने योग्य जे कारण तिनकौं तौ शीघ्र छोरता है अर हितके कारण तिनकौं सेवता है सोई जीव ज्ञानी है। अर सोइ सम्यक्चारित्री है अर सोई सुख अर यशका निधान है। ___ भावार्थ-विवेकी पुरुष हैं सो पहलै दौषकौं अर गुणकों पहचानें । तहाँ विचार कीएं मिथ्यात्वादिक तौ दोष भासै, जात एई आत्माकौं दुखी करै हैं । बहुरि सम्यक्त्वादि गुण भासै, जातें ए आत्माकौं सुखी करै हैं । बहुरि दोषके अर गुणके जे कारण हैं तिनिकौं पहचानें, तहाँ बिचार कीएं कुदेव कुगुरु कुशास्त्रादिक वा विषयादिक सामग्री तौ दोषके कारण भासै । अर सुदेव सुगुरु सुशास्त्रादिक वा व्रत संयमादिक गुणके कारण भासै । ऐसे निश्चै भए त्यजने योग्य जे दोषके कारण तिनिकौं त्यजै, अर ग्रहण योग्य जे गुणके कारण तिनिकौं ग्रहै । तहां दोष गुण अर तिनिके कारण तिनिका निश्चयकरि जाननां भया सो तौ सम्यग्दर्शन सहित सम्यग्ज्ञान है । अर सर्व दोषका कारण छोडि गुणका ग्रहण करनां सो सम्यक्चारित्र है । ऐसे ए तीनों मिले मोक्षमार्ग भया, ताका फल मोक्ष हो है । तहां अनन्त सुखकौं अनुभवै है, अर वाका सर्व प्रकार महिमा हो है । तातै पहलै कारण सहित गुण दोषकौं जाननां योग्य है । - आर्गे विवेकी जीवकरि हितकी वृद्धि अहितका नाश ए दोय कारण करने योग्य हैं, जा तिस विनां अन्य धनादिकविर्षे जे वृद्धि नाश है तिनिका तौ सर्व प्राणीनिकै समानपनां पाईए है ऐसा कहै हैं
वसन्ततिलका छन्द साधारणौ सकलजन्तुषु वृद्धिनाशी
जन्मान्तरार्जितशुभाशुभकर्मयोगात् । धीमान् स यः सुगतिसाधनवृद्धिनाशः
. तद्वयत्याद्विगतधीरपरोऽभ्यधायि ॥१४८॥ अर्थ-अन्य पूर्व जन्मनिविर्षे निपजाए ऐसे पुन्य पाप कर्म तिनिके उदयरूप संयोग” शरीर धनादिकका बधनां वा नाश होनां सो तौ सर्व प्राणीनिविर्षे समान पइए है। बहुरि बुद्धिवान सोई है जौं सुगतिकौं कारणभूत वृद्धि
१. तिनि दोषनिका “ऐसे निश्चै करनहारा. मु. १४७-१४
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