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आंशिक दोष भी अहितकर चरण है सो भी नांही भींटे। सो न्याय ही है-गुण का नाश है सो कहा लघुता न करै, अपितु सर्व ही करै ।
भावार्थ-लोकविर्षे गुण ही करि महिमा है, सो देखो जिस फूलको सुगंधादिक गुण होते महंत पुरुष भी अपने मस्तक विर्षे राखें थे तिस ही फूलको गुण गएं पीछे कोई पगनिकी ठोकर भी देता नांहीं। सो इहां भी यह अर्थ समझनां, जो ज्ञान सहित तप होतें जाकौं देव भी पूजै थे तिस ही कौं भ्रष्ट भएं पीछे कोई ताका संगम भी नांही करै । सो गुणका नाश लघुपना करै ही करै । तारौं गुणकी रक्षा ही करनी योग्य' है । बहुरि इहां ऐसा भाव जानना जो कुल वा पदस्थका वा भेषादिकका सम्बन्धकरि बडापनौ मानिये है सो भ्रम है। एक ही जीव गुण होतें जो वंद्य था सोई गुण गए निंद्य भया, तौ पूर्वं अन्य जीव गुणवान भए थे अर आप भ्रष्ट भया तब उनके गुणनितें यह कैसैं वंद्य होइ । अपने वर्तमान गुणनिहीत वंद्यपनां हो है, ऐसा निश्चय करना। ____ आगें बहुत गुण होतें भी दोषके अंशका भी रहना भला नाही । बहुरि तिस दोषके अंशकौ रहते संतै तिस दोषमयपनौ ही भलौ है ऐसा अन्योक्ति अलंकारकरि स्वरूप दिखावता संता सूत्र कहै है
(वसन्त-तिलका छन्द) हे चन्द्रमः किमिति लाञ्छनवानभूस्त्वं तद्वान् भवेः किमिति तन्मय एव नाभूः । कि ज्योत्स्नया मलमलं तव घोषयन्त्या, स्वर्भानुवन्ननु तथा सति नासि लक्ष्यः ।।१४०॥ अर्थ-हे चंद्रमा ! तूं कलिमारूप लांछन सहित ऐसा क्यों भया ? बहुरि जो लांछन सहित ही भया था तौ तूं सर्व ही कालिमा मई ऐसा क्यों न भया । रे अतिशयकरि तेरे मलकौं बलवती ऐसी जो अवशेष रही ज्योति ता करि कहा सिद्धि है। इहां विचार करि जो राहवत् तैसे ही सर्व काला होय तो तूं काहू करि लखने योग्य टोकने योग्य न हो है।। ____ भावार्थ-इहां अन्योक्ति अलंकारकरि चंद्रमाकौं उलहनां दीया है। सो कोई ऊँची मुनिपदवी धारि तिस विषै दोष लगावै है ताकौं यहु उलाहनां जाननां । जैसैं चन्द्रमा उज्वल पदवीका धारक अर वाकै किंचित्
१. ही याग्य, १३९.२.
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