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योगीके नारीसे दूर रहनेकी शिक्षा जैसैं खरची वटसारी पासि होय तो शिथिलता न होय, तैसें तपका साधन करि शिथिलता न हो है। बहुरि जैसै चढनेकौं पालिको होइ तौं चलते खेद न होइ, तैसै निष्कषायरूप चारित्र भावकरि मोक्षमार्गविर्षे प्रवर्तता खेद न हो है । बहुरि जैसै मार्गविषै बसनैकै स्थान चोखे होइ तौ तहां विश्राम होइ, तैसैं मोक्षमार्गविषै बसनैको स्थान स्वर्ग है तहां विश्राम हो है। बहुरि जैसे रखवाले साथि होइ तो कोई न लूट, तैसै क्षमादिक गुण रखवाले हैं तातै क्रोधादिक नांही लूटै है । बहुरि जैसे मार्ग सूधा होइ तों सुखसों गमन होइ । तैसे मोक्षमार्ग सरल कपट रहित है, तातै सुखसों तहाँ प्रवृत्ति हो है । बहुरि मार्गविषै उपशम भाव है ताकरि तृष्णाका दुःख न हो है । बहुरि जैसै मार्गविषै छाया होइ तौ आताप न होइ, तैसैं मोक्षमार्गविर्षे स्वदया परदया है तातै संताप न हो है। बहुरि जैसैं गमन करै तौ नगरकौं पहोंचे, तैसँ इहां शुद्ध भावना भावै है ताकरि •मोक्षको पावै है । ऐसैं सासग्री मिलें जैसैं पथिक अभीष्ट नगरकौं पहौंचे तैसैं मोक्षमार्गी अभीष्ट मोक्षपदको पावै है।
आगै तिस चलनेविर्षे उपद्रव कौन है ऐसी आशंका करि तिन उपद्रवनिकौं पंच श्लोकनि करि कहै हैं
शार्दूल छंद मिथ्या दृष्टिविषान् वदन्ति फणिनो दृष्टं तदा सुस्फुटं यासामर्धविलोकनैरपि जगद्दन्दह्यते सर्वतः । तास्त्वय्येव विलोमवतिनि भृशं भ्राम्यन्ति बद्धक्रुधः स्त्रीरूपेण विषं हि केवलमतस्तद् गोचरं मा स्म गाः ।।१२६ अर्थ-सर्पनिकौं जो दृष्टि-विष जातिके बतावै हैं सो तो झूठ है । हम इनि स्त्रीनिविर्षे जो दृष्टिविषपनों प्रकट देख्या है। कैसी है स्त्री जिनका कटाक्षरूप आधा अवलोकननिकरि भी लोक सर्वांगपनै दाहरूप हो है। बहुरि तिनिका त्यागौं प्रतिकूली भया जो तूं सो तुझविर्षे क्रोधवन्त हुई ते स्त्री तोकौं भ्रष्ट करनेकै अथि अतिशयकरि भ्रमै है। सो स्त्रीरूप करि केवल यहु विष है । यात तूं तिनकै गोचर मति प्राप्त होहु । ___ भावार्थ-लोकविर्षे कोई सर्प ऐसे सुनिए हैं जिनकौं देखें ही विष चढे, सो यहु तौ अलंकार करिकै झूठ बताया। बहुरि स्त्रीनिकै कटाक्षकरि तत्काल विषसमानं आतापकारी काम विकार होइ तातै स्त्रीनिकै दृष्टिविषपनौं कह्यौ । बहुरि इहां मुनिकौं यह सीख दई जो और तौ सर्व ही
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