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आत्मानुशासन भावार्थ-जैसे अस्त होता सूर्य है सो अपनां फैलि रह्या प्रकाशको तौ छांडै है अर अन्धकार आगामी होनहार भया है तिस संध्या समयविर्षे जो रक्त रंग हो है ताकौ प्राप्त भया सूर्य है सो ज्योतिष्क मतकी अपेक्षा वा दष्टि आव.की अपेक्षा पातालकौं प्राप्त हो है। तेसैं भ्रष्ट अवस्थाकौं प्राप्त होता आत्मा है सो अपना फैलि रह्या ज्ञानभावकौं तौ छांडे है, अर अज्ञान आगामी होनहार भया है तिस समयविषै जो हिंसादिक पापरूप रागभाव हो है ताकौं प्राप्त भया आत्मा है सो पातालविष नरकादिक वा नीच दशारूप निगोदादि पर्याय ताकौं प्राप्त हो है। ऐसैं यद्यपि अशुभ शुभ दोऊ रागभाव होय हैं, परन्तु नीचैकी दशाविर्षे शुभ राग तौ कथंचित् आगामी शुद्धताको कारण भी है तातै थोरा हेय है । बहुरि अशुभ राग है सो तौ आगामी कुगतिका कारण है। तातै सर्वथा अत्यन्त हेय है । तात याका तौ अवश्य त्याग करना।
आगे ऐसै च्यार प्रकार आराधनाविषै निष्कपट मनकरि प्रवत्तें है जो मोक्षाभिलाषी जीव ताकै मोक्षकी प्राप्ति निर्विघ्न हो है ऐसै दिखावता सूत्र कहै हैं
शार्दूलछन्द
ज्ञानं यत्र पुरःसरं सहचरी लज्जा तपः संबलं, चारित्रं शिविका निवेशनभुवः स्वर्गा गुणा रक्षकाः । पन्थाश्च प्रगुणः शमाम्बुबहुलश्छाया दयाभावना यानं तं मुनिमापयेदभिमतं स्थानं विना विप्लवैः ॥१२५॥ अर्थ-ज्ञान तौ अग्रेसरी अर लज्जा साथि चालनहारी अर तप वटसारी अर चारित्र पालक अर बीचमैं रहनेके स्थान स्वम् अर गुण रखवाले अर सूधा जाविर्षे उपशम जल बहुत पाइए ऐसा मार्ग अर दयारूप छाया, भावनारूपी गमन, ऐसा जहां समाज मिले सो समाज तिस मुनिको उपद्रव बिना अभीष्ट स्थानककौं प्राप्त करै है। ___भावार्थ-कोई पुरुष काहू नगरकौं चालै तहां आगू आदि सासग्री मिले तौ निरुपद्रव नगरकौं पहौंचै । इहां कोई भव्य मोक्षकौं चाहै तहाँ ज्ञानादिक सामग्री मिले तो निरुपद्रव प्राप्त होइ । तहां जैसैं 'आगू मार्ग बतावै तैसें ज्ञान तौ मोक्षमार्गविर्षे हेयोपादेय तत्त्वनिका निश्चय करावै है। बहरि जैसे साथि स्त्री होइ तौ मार्गविर्षे सुखसौं गमन करै, तैसैं साथि धर्मसम्बन्धी लज्जा ताकरि मोक्षमार्गविर्षे सुखसौं प्रवत्तें है । बहुरि
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