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धर्म और धर्मका फल भया ताका सेवन छोरि राजाका सेवन काहेकौं करै है । इहां भाव यह है-धर्म का सेवन छोरि अन्य कार्य करना योग्य नांहों। ___ आगें पंगौं पड्या है औरनिका मस्तक जाकै ऐसा कोई कृष्ण नामा राजा ताका धरया हवा निधानका जो कोई स्थानक ताका निरूपणका मिसकरि धर्मका लक्षण निधानका स्वरूप मार्ग ताकौं दिखावता संता सूत्र कहै हैं
सार्दूल छंद यस्मिन्नस्ति स भृमृतो धृतमहावंशाः प्रदेशः परः प्रज्ञापारमिता धृतोन्नतिधनाः मृर्ना ध्रियन्ते श्रियै । भूयास्तस्य भुजङ्गदुर्गमतमो मार्गो निराशस्ततो व्यक्तं वक्तुमयुक्तमार्यमहतां सर्वार्थसाक्षात्कृतः।।९६॥ अर्थ-इहां श्लेषालंकार किया है। तहां एक अर्थविर्षे तौं कोई सर्वार्य नामा दूसरा मंत्री राजाका भया है, वा. दुर्गम स्थान जहां कोई कृष्ण राजाका निधान था तहां जाय बाकौं प्रगट कीया है, ताका वर्णन कीया है । बहुरि दूसरे अर्थवि धर्मके लक्षणादिकका वर्णन है । तहां पहलैं पहला अर्थ कीजिये है । सो प्रदेश कहिए स्थानक सो पर कहिए उत्कृष्ट है । सो कौन ? जिस प्रदेशविर्षे पर्वत तिष्ठे है । कैसै हैं पर्वत ? धारे हैं बडे बांस जिने नै । बहरि कैसे हैं ? बद्धि ही करि छेहडा पाईए है जिनका ऐसे वडे हैं । बहुरि कैसे हैं ? शिखरकरि सोभाकै अथिं धारया है उचाईरूप धन जिननें । ऐसे पर्वतनिकरि संयुक्त प्रदेश है । बहरि तिस प्रदेशका मार्ग है सो बड़ा है । सर्पनिकरि अतिशयपनें औरनिकौं दुर्गम है। आशा जे दिशां तिनिकरि निष्कांत है । जहां दिशानिकी शुद्धि नहीं रहे है ऐसा जाका मार्ग है । सो वह प्रदेश जैसे व्यक्त सबनिकरि जान्या जाय तैसैं कहना अयुक्त है, कह्या जाता नांही। हे आर्य ! तिस प्रदेशका अजाननहारा ऐसा विषम प्रदेश है सो सर्वार्य नामा कोई राजाका दूसरा मंत्री तिह साक्षात् किया है जाय करि प्रत्यक्ष देख्या है । ऐसें एक अर्थविर्षे सर्वार्य मंत्रीकी प्रशंसा करी । अब याहीका द्वितीय अर्थ कहिए है__ प्रदिश्यते कहिए परकों उपदेशिए ऐसा जु प्रदेश कहिए धर्म सो वह धर्म उत्कृष्ठ है । सो कौन ? जाकौं होतें भूभृत जे राजा हैं ते लोकनकरि लल्मीकै अर्थि मस्तककरि धारिये हैं । लोक लक्ष्मीकै अथि राजानिकौं नमावै हैं सो राजानिकै यहु धर्म ही का फल है । कैसे हैं राजा ! धारया है इक्ष्वाकु आदि
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