________________
गुरुका स्वरूप
. भावार्थ-सर्व पर्यायिनिविर्षे मनुष्य पर्याय धर्म साधनकौं कारण है । बहुरि धर्म साधन ही तैं मनुष्य पर्याय सफल हो है। सो तेरा मनुष्य पर्यायका काल तो ऐसें बीते है। बालकपनै तौ कुछ हित-अहितका ज्ञान है. होइ सकै नाहीं । यौवनविौं तूं स्त्रीनिका रसिया होय कामान्ध भया । मध्य अवस्थाविषै कुटुम्बादिककी वृद्धि भई, तहां मोकों सर्वका निर्वाह किया चाहिए ऐसा विचारि धन उपजानेंकै अथि खेद-खिन्न रहै । वृद्धअवस्था आएं इन्द्रिय मन शिथिल होनैआधा मृतक समान हो है।
ऐसैं काल बीतें धर्म कहां सधै, मनुष्य जन्म कैसै सफल होइ ? तातें बाल-वृद्ध अवस्था विर्षे तौ वस नाहीं। यौवन अवस्था वा मध्य अवस्थाविर्षे स्त्री कुटुम्बादिकसौं राग छोडि धर्म साधन करौ ऐसे ही तुम्हारा जन्म सफल हो है।
आगें तीनौं अवस्थाविर्षे बुरा करनहारा जो कर्म ताका वशवर्ती होना अब तोकौं योग्य नाहीं, ऐसे सीख देता संता सूत्र कहै हैं
शार्दूल छन्द वाल्येऽस्मिन् यदनेन ते विरचितं स्मतुच तन्नोचितं मध्ये चापि धनार्जनव्यतिकरैस्तन्नास्ति यन्नापितः । वार्धिक्येऽप्यभिभूय दन्तदलनाद्याचेष्टितं निष्ठुरं पश्याद्यापि विधेर्वशेन चलितु वाञ्छस्यहो दुर्मते ॥९॥ अर्थ-इस पर्यायविर्षे इस कर्म. बाल अवस्थाविर्षे जो तेरा किछू बुरा किया सो याद करने योग्य भी नांही। बहुरि मध्यावस्थाविर्षे धन उपजावनेंका प्रकारनिकरि सो कोई दुख रह्या नाहीं जो तौकौं न दिया । बहुरि वृद्ध अवस्थाविर्षे भी तेरा अपमान करि दन्त तोडनां आदि कठोर चेष्टा करी, सो तूं देखि । हे दुर्बुद्धी ! अब भी इस कर्मका वस करि ही चलने कौं चाहै है। __भावार्थ-लोकविर्षे कोई एक वार अपना बुरा करै ताकौं अपना बैरी जानि वाकै आधीन रह्या चाहै नाहीं, वाका नाश करना ही विचारै सो इस कर्म. अनादि संसार” जो तेरा बुरा किया ताका तौ तोकौं स्मरण नाहीं । परन्तु इस पर्यायवि बाल अवस्थावि तौ गर्भ जन्म शरीर वृद्धि आदि दशानिकरि अर मध्य अवस्था विर्षे धन उपार्जन आदि क्रियानिकरि अर वृद्धावस्था विर्षे धन दांत तौडनां आदि अपमान कार्य करनँकरि जो बुरा किया सो तूं देखै है । असें भी प्रत्यक्ष देखि अब भी तूं कर्म ही के आधीन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org