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सम्यग्दर्शनका स्वरूप अर्थ-तूं सांच कहि, जो तैं संसारविर्षे बन्धुजनः बन्धुनिकरि करने योग्य हितरूप प्रयोजन किछू भी पाया है ! सो तौ किछू भी कुटुम्बतै हित भया दीसता नाहीं। केवल इतना ही उनका उपकार भासै हैं जो तेरे मूएँ पीछै एकठे होयकरि तेरा बैरी शरीर ताकों भस्म करै है। . भावार्थ-भाई बन्धु तौ उनका नाम है जो अपना किछू हित करै । सो त जिनिको भाई-बन्धु मानै है सो इD. किछ हित किया होय सो बताइ, जातें तेरा मानना साँच होइ। बहुरि हमकों तौ केवल इनिका इतना ही हित करना भासै है जो बैरीका बैरी होय ताकों अपना हित कहिये है। सो तेरा बैरी शरीर था, सो तेरे मुएंपीछे मिलिकरि इनें शरीरको दग्ध किया। तेरा बैरका बदला लिया। ऐसे इहां युक्तिकरि कुटुम्बतें हित होता न जानि राग न करना ऐसी शिक्षा दई है। ____ आगै तर्क करै हैं जो विवाहादि कार्य बन्धुजनतै होइ है ऐसा प्रतीति है, तातै तिस बन्धुजन हितरूप कार्य कैसैं न हो है ऐसी आशङ्काकरि उत्तर कहै हैं
जन्मसन्तानसंपादिविवाहादिविधायिनः। स्वाः परेऽस्य सकृत्प्राणहारिणो न परे परे ॥८४।। अर्थ संसार परिपाटीके निपजावनहारे विवाहादि कार्य, तिनके करनहारे जे स्वकीय कुटुम्ब हैं तै ही इस जीवके बैरी हैं । बहुरि जै एक बार प्राण हरै ऐसैं पर कहिये बैरी, तै वैरी नाहीं हैं।
भावार्थ-जो एक बार प्राण हरै ताको तूं परम बैरी मानै है सो प्राण-नाश वाका किया होता नाही, आयुका अन्त आये हो है । तातें परमार्थतें प्राण हरनहारा वैरी नांहीं है। बहुरि जै विवाहादि कार्यनिविर्षे जीवको उलझाय रागादिकके निमित्त बनाने हैं ऐसे जे बन्धुजन ते अनेक जन्म-मरणका कारण कर्मबन्ध कराया याका बुरा करै हैं । तातें परमार्थतें बन्धुजन नैरी हैं, जैसैं देनां दिवानै सो नैरी नाहीं । जो नवीन देनां करानै सो वैरी है । तैसैं प्राण हरनहारा तौ पूर्व कर्मकी निर्जरा कराने है, तातें बैरी नाहीं, ए वन्धुजन नए कर्मबन्धका कारण निपजावै हैं, तातै एई वैरी हैं । ऐसा जानि इनिकौं हितू मानि राग न करना।
आगै बन्धुजन जे हैं ते विवाहादि विधानकरि, धन धान्य स्त्री आदि इष्ट वस्तुकौं निपजावनेंकरि वांछित प्रयोजनकी प्राप्ति करनहारे हैं, तातें तिनकै शत्रुपना है, ऐसा अयुक्त वचन है, ऐसे कहें उत्तर कहै है
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