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आत्मानुशासन - अर्थ हे निर्बुद्धि ! यह शरीररूप घर तेरा बन्दीगृह समान है । यासू वृथा प्रीति मति करै । कैसा है शरीररूप बन्दीगृह, अस्थिरूप स्थूल पाषाण तिनिके समूहकरि घड्या है। अर नसा जालरूप बन्धनकरि बेड्या है । अर चरमसौं आछाद्या है। अर रुधिर कर सजल जो मांस ता करि लिप्त है। अर दुष्ट कर्मरूप बैरीनिकरि रच्या है । अर आयु कर्मरूप गाढ़ी भारी बेड़ी तिनिकरि युक्त है। ___ भावार्थ-बन्दीगृह समान और दुःखका कारण नाहीं । सो बन्दीगृह तौ स्थूल पाषाणनिके समूहकरि घडिए है, अर शरीर हाडनिकरि घड्या है । अर बन्दीगृह बन्धनकरि बेढिये है ए नशा जालकरि बेढ्या है । अर वह हू ऊपरि सू आच्छादित है, यह चर्मकरि आच्छादित है, अर रुधिर, सहित मांसकरि लीप्या है। वह दुष्टनिकरि रच्या है, यह कर्मरूप दुष्ट बैरीनि करि रच्या है। अर वह बैडीनिकरि युक्त है, यह आयुरूप बैडिनिकरि युक्त है । सो ऐसा कौन कुबुद्धि है जो बन्दीगृहत प्रीति करै ? तूं महा निर्बुद्धि, जो शरीररूप बन्दीगृहत प्रीति करै है सो तोहि या प्रीति उचित नाहीं। ___ आगे कहै हैं कि शरीर तो बन्दीगृह समान बताया, अर और हू वस्तु घर-कुटुम्बादि जिनसू तेरी प्रीति है सो कैसे हैं, यह दिखावे हैं
मालिनी छन्द शरणमशरणं वो बन्धवो बन्धमूलं
चिरपरिचितदारा द्वारमापद्गृहाणाम् । विपरिमशत पुत्राः शत्रवः सर्वमेतत्
त्यजत भजत धर्म निर्मलं शर्मकामाः ॥६॥ ___अर्थ-घर तेरा शरणरहित है जहाँ तोहि कोऊ बचावनहारा नाहीं। ए बांधव बन्धके मूल हैं । अर जासूं तेरा अति परिचय है ऐसी जो स्त्री सो आपदारूप घरका द्वार है । अर ए पुत्र शत्रु हैं । ए सर्व परिवार दुःख ही का कारण है । ऐसा तू बिचारि करि इनि सबनि · तजि । जो सुखका अर्थि है तो निर्मल धर्म कूँ भजि । ____ भावार्थ-या संसार असार विर्षे तैं सार कहा जान्या ? जिनि जिनि वस्तुनि विर्षे तूं राग करै है सो सब दुःखका मूल है । घर तो शरणरहित है, जहाँ कोऊ रक्षक नाहीं, अनेक उपाधिका मूल है। अर ए बांधव बन्ध ही के कारण हैं । इहभव परभव दुःखदाई हैं। अर तू स्त्री . निपट
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