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________________ २० सारसमुच्चय ( रक्षणम् कुर्वन्ति) रत्नत्रयधर्मकी रक्षा करते हैं । भावार्थ- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र रत्नत्रय धर्म है । निश्चयसे यह आत्मानुभवरूप है । यह आत्माका स्वभाव ही है । इसको कषायोंने और विषयोंने ऐसा छिपा दिया है कि इस धर्मरत्नका पता ही नहीं चलता । वही सच्चा योद्धा है जो आकिंचन्य धर्मरूपी खड्ड लेकर उसका ऐसा तीव्र प्रहार विषय - कषायरूपी चोरों पर करता है कि वे घायल होकर भाग जाते हैं और रत्नत्रय धर्मकी रक्षा हो जाती है । इस जगतमें मेरा कुछ नहीं है, मेरा किसीसे कोई सम्बन्ध नहीं है ऐसा भाव आकिंचन्य धर्म है । यही भाव परम वैराग्यकी खड्ग है । सम्यग्दर्शनका महत्त्व कषायकर्षणं कृत्वा विषयाणामसेवनम् । एतद् भो मानवाः ! पथ्यं सम्यग्दर्शनमुत्तमम् ॥३७॥ अन्वयार्थ - (भो मानवाः) हे मानवो ! (कषायकर्षणं) कषायोंको कम ( कृत्वा) करके (विषयाणां ) पंचेन्द्रियके विषयोंका ( असेवनम् ) सेवन नहीं करना ( एतत् पथ्यं) इसका पथ्य या हितकारी उपाय ( उत्तमं ) उत्तम निर्दोष (सम्यग्दर्शनं) सम्यग्दर्शन है । भावार्थ-विषयकषायोंको दूर करने के लिए पथ्यके समान उपाय निर्दोष सम्यग्दर्शन है | जब निश्चय सम्यग्दर्शन प्रगट हो जाता है तब आत्मप्रतीति हो जाती है कि मेरा आत्मा मूलमें परमात्माके समान ज्ञात दृष्टा अविनाशी है तथा सच्चा सुख मुझे स्वतंत्रतासे अपने ही आत्माके अनुभवसे प्राप्त हो सकता है; और विषयसुख खारा पानी पीनेके समान विषय-चाहको शमन नहीं करता है, प्रत्युत बढ़ा देता है । यही श्रद्धा कषायोंका अनुभाग या बल कम करती हुई उनको कृष करती हुई चली जाती है । जैसे-जैसे कषाय मंद होते हैं वैसे वैसे ही विषयभोगोंके सेवनकी प्रवृत्ति कम होती जाती है। आचार्य कहते हैं कि हे मानवो! इस सम्यग्दर्शनका प्रकाश करो और इसको नसे रक्खो । कषायातपतप्तानां विषयामयमोहिनाम् । संयोगायोगखिन्नानां सम्यकुत्वं परमं हितम् ॥ ३८॥ अन्वयार्थ- (कषायातपतप्तानां ) जो प्राणी कषायोंके आतापसे जल रहे हैं (विषयामयमोहिनाम्) वही विषयरूपी रोगसे या विषसे मूर्छित है तथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004017
Book TitleSara Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulbhadracharya, Shitalprasad
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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