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वृहद्र्व्य संग्रहः
[गाथा १० अणुगुरुदेहपमाणो उवसंहारप्पसप्पदो चेदा । असमुहदो ववहारा णिच्चयणयदो असंखदेसो वा ॥१०॥ अणुगुरुदेहप्रमाणः उपसंहारप्रसप्तः चेतयिता ।
असमुद्घातात् व्यवहारात् निश्चयनयतः असंख्यदेशो वा ॥ १० ॥ व्याख्या- "अणुगुरुदेहपमाणो" निश्चयेनस्वदेहाद्भिन्नस्य केवलज्ञानाधनन्तगुणराशेरभिन्नस्य निजशुद्धात्मस्वरूपस्योपलब्धेरभावात्तथैव देहममत्वमूलभूताहारभयमैथुनपग्ग्रिहसंज्ञाप्रभृतिसमस्तरागादिविभावानामासक्तिसद्भावाच्च यदुपार्जितं शरीरनामकर्म तदुदये सति अणुगुरुदेहप्रमाणेो भवति । स कः कर्ता ? "चेदा" चेतयिता जीवः । कस्मात् ? "उवसंहारप्पसप्पदो" उपसंहारप्रसर्पतःशरीरनामकर्मजनितविस्तागेपसंहारधर्माभ्यामित्यर्थः । कोऽत्र दृष्टान्तः १ यथा प्रदीपो महद्भाजनप्रच्छादितस्तद्भाजनान्तरं सर्व प्रकाशयति लघुभाजनप्रच्छादितस्तद्भाजनानन्तरं प्रकाशयति । पुनरपि कस्मात् ? 'असमुहदो' असमुद्घातात् वेदनाकषाय
गायार्थः-समुद्घात के बिना यह जीव व्यवहार नय से संकोच तथा विस्तार से अपने छोटे और बड़े शरीर के प्रमाण रहता है और निश्चय नय से असंख्यात प्रदेशों का धारक है ॥ १० ॥
वृत्त्यर्थः-"अणुगुरुदेहपराणो” निश्चय नय से अपने देह से भिन्न तथा केवल ज्ञान आदि अनन्त गुणों की राशि से अभिन्न, ऐसे शुद्ध आत्मस्वरूप की प्राप्ति के अभाव से तथा देह की ममता के मूल भूत आहार, भय, मैथुन, परिग्रह रूप संज्ञा आदि; समस्त राग आदि विभावों में आसक्ति के होने से जीव ने जो शरीर नामकर्म उपार्जन किया उसका उदय होने पर अपने छोटे तथा बड़े देह के बराबर होता है। प्रश्न:-शरीर प्रमाण वाला कौन है ? उत्तर:--"चेदा" चेतन अर्थात् जीव है । प्रश्नः-किस कारण से ? उत्तरः- "उवसंहारप्पसप्पदो" संकोच तथा विस्तार स्वभाव से । यानी-शरीर नाम कर्म से उत्पन्न हुआ विस्तार तथा संकोच रूप जीव के धर्म हैं; उनसे यह जीव अपने देह के प्रमाण होता है । प्रश्नः-यहाँ दृष्टान्त क्या है ? उत्तरः-जैसे दीपक किसी बड़े पात्र से ढक दिया जाता है तो दीपक उस पात्र के भीतर प्रकाशित करता है और यदि छोटे पात्र में रख दिया जाता है तो उस पात्र के भीतर प्रकाशित करता है । प्रभः---फिर अन्य किस कारण से यह जीव देहप्रमाण है ? उत्तरः-"असमुहदो" समुद्घात के न होने से । वेदना, कपाय, विक्रिया, मारणान्तिक. तैजस, आहारक और केवली नामक सात समुद्घातों के न होने से जीव शरीर के बराबर होता है । (समुद्घात की दशा में तो जीव देह से बाहर भी रहता है किन्तु समुद्घात के बिना देहप्रमाण ही रहता है)। सात समुद्घातों का लक्षण इस प्रकार
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