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________________ गाथा ७ ] प्रथमाधिकारः [ १६ णस्य सातादुपादेयभूतस्याक्षयसुखस्योपादानकारणत्वात् केवलज्ञानदर्शनद्वयमुपादेयमिति । एवं नैयायिकं प्रति गुणगुणिभेदैकान्तनिराकरणार्थमुपयोगव्याख्यानेन गाथात्रयं गतम् ॥ ६ ॥ अथामूर्तातीन्द्रियनिजात्मद्रव्यसंवित्तिरहितेन मृत्तपञ्चेन्द्रियविषयासक्तेन च यदुपार्जितं मूर्त कर्म तदुदयेन व्यवहारेण मूर्तोऽपि निश्चयेनामूतों जीष इत्युपदिशति : वरुण रस पंच गंधा दो फासा अट्ट णिच्छया जीवे । यो संति अमुत्ति तदो ववहारा मुत्ति बंधादो ॥ ७ ॥ वर्णाः रसा: पंच गन्धौ द्वौ स्पर्शाः अष्टौ निश्चयात् जीवे । नो संति अमूत्तिः ततः व्यवहारात् मूत्तिः बन्धतः ॥७॥ व्याख्या- "वरण रस पञ्च गंधा दो फासा अट्ट णिच्छया जीवे णो संति" श्वेतपीतनीलारुणकृष्णसंज्ञाः पञ्च वर्णाः, तिक्तकटुकषायाम्लमधुरसंज्ञाः पञ्च रसाः, सुगन्धदुर्गन्धसंज्ञौ द्वौ गन्धौ, शीतोष्णस्निग्धरूतमृदुकर्कशगुरुलघुसंज्ञा अष्टौ स्पर्शाः, “णिच्छया" शुद्धनिश्चयनयात् शुद्धबुद्धैकस्वभावे शुद्धजीवे न और आत्मा इन दोनों के एकान्त रूप से भेद के निराकरण के लिये उपयोग के व्याख्यान द्वारा तीन गाथा समाप्त हुई ॥६॥ - अव अमूर्तिक तथा अतीन्द्रिय निज आत्मा के ज्ञान से रहित होने के कारण तथा मूर्त जो पांचों इन्द्रियों के विषय हैं उनमें आसक्ति के द्वारा जीव ने जो मूर्तिक कर्म उपार्जन किया है उसके उदय मे व्यवहार नय की अपेक्षा से जीव मूर्तिक है तथापि निश्चयनय से अमूर्तिक है ऐसा उपदेश देते हैं: गाथार्थः-निश्चयनय से जीव में पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गंध और आठ स्पर्श नहीं हैं। इसलिये जीव अमूर्तिक है और व्यवहारनय की अपेक्षा कर्म-बंध होने के कारण जीव मूर्तिक है ॥ ७ ॥ वृत्त्यर्थः-“वण्ण रस पंच गंधा दो फासा अट्ठ णिच्छया जीवे णो संति" सफेद, पीला, नीला, लाल तथा काला ये पांच वर्ण; चरपरा, कडुआ, कषायला, खट्टा और मीठा ये पांच रस; सुगन्ध और दुर्गन्ध ये दो गन्ध तथा ठंडा, गर्म, चिकना, रूखा, कड़ा, भारी और हलका यह आठ प्रकार के स्पर्श शुद्ध निश्चयनय से शद्ध-बुद्ध स्वभाव-धारक शुद्ध जीव में नहीं हैं । "अमुत्ति तदो" इस कारण यह जीव अमूर्तिक है अर्थात् मूर्ति-रहित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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