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गाथा ३५] द्वितीयोऽधिकारः
[ १३३ च बहिर्भागे । तेषां च जघन्यजीवितमन्तर्महूर्तप्रमाणम् , उत्कर्षेण पल्यत्रयं, मध्ये मध्यमविकल्पा बहवस्तथा तिरश्चां च । एवमसंख्येयद्वीपसमुद्रविस्तीर्णतिर्यग्लोकमध्येऽर्धतृतीयद्वीपप्रमाणः संक्षेपेण मनुष्यलोको व्याख्यातः ।
अथ मानुषोत्तरपर्वतसकाशाद्वहिर्भागे स्वयम्भरमणद्वीपाधं परिक्षिप्य योऽसौ नागेन्द्रनामा पर्वतस्तस्मात्पूर्वभागे ये संख्यातीता द्वीपसमुद्रास्तिष्ठन्ति तेषु यद्यपि 'व्यन्तरा निरन्तरा' इति वचनाद् व्यन्तरदेवावासास्तिष्ठन्ति तथापि पल्यप्रमाणायुषां तिरश्चां सम्बन्धिनी जघन्यभोगभूमिरिति ज्ञेयम् । नागेन्द्रपर्वताद्वहिर्भागे स्वयम्भरमणद्वीपार्धे समुद्र' च पुनर्विदेहवत्सर्वदैव कर्मभूमिश्चतुर्थकालश्च । परं किन्तु मनुष्या न सन्ति । एवमुक्तलक्षणतिर्यग्लोकस्य तदभ्यन्तरं मध्यभागवर्तिनो मनुष्यलोकस्य च प्रतिपादनेन संक्षेपेण मध्यमलोकव्याख्यानं समाप्तम् । अथ मनुष्यलोके द्विहीनशतचतुष्टयं तिर्यग्लोके तु नन्दीश्वरकुण्डलरुचकाभिधानद्वीपत्रयेषु क्रमेण द्विपश्चाशच्चतुष्टयचतुष्टयसंख्याश्चाकृत्रिमाः स्वतन्त्रजिनगृहा ज्ञातव्याः।
आरों के आकार समान पति और आरों के छिद्रों के समान क्षेत्र जानने चाहिये । मानुषोत्तर पर्वत के भीतरी भाग में ही मनुष्य निवास करते हैं बाहरी भाग में नहीं। उन मनुष्यों की जघन्य आयु अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट आयु तीन पल्य के बराबर है। मध्य में मध्यमविकल्प बहुत से हैं । तिर्यचों की आयु भी मनुष्यों की आयु के समान है। इस प्रकार असंख्यात द्वीप समुद्रों से विस्तरित तिर्यग्लोक के मध्य में ढाई द्वीप प्रमाण मनुष्यलोक का संक्षेप से व्याख्यान हुआ।
__ अब मानुषोत्तर पर्वत से बाहरी भाग में, स्वयंभूरमण द्वीप के अर्धभाग को वेढ़कर जो नागेन्द्र नामक पर्वत है, उस पर्वत के पूर्व भाग में जो असंख्यात द्वीप समुद्र हैं, उनमें 'व्यन्तर देव निरन्तर रहते हैं। इस वचनानुसार, यद्यपि व्यन्तर देवों के आवास हैं, तथापि एक पल्यप्रमाण आयुवाले तिर्यचों की जघन्य भोगभूमि भी है, ऐसा जानना चाहिये । नागेन्द्र पर्वत से बाहर स्वयंभूरमण आधे द्वीप और पूर्णस्वयंभूरमण समुद्र में विदेह क्षेत्र के समान, सदा ही कर्मभूमि और चतुर्थ काल रहता है । परन्तु वहाँ पर मनुष्य नहीं हैं। इस प्रकार तिर्यग् लोक के तथा उस तिर्यक लोक के मध्य में विद्यमान मनुष्य-लोक के निरूपण द्वारा मध्य लोक का व्याख्यान समाप्त हुआ । मनुष्य लोक में तीन सौ अट्ठानवे ३६८ और तिर्यक् लोक में नन्दीश्वर द्वीप, कुण्डल द्वीप तथा रुचक द्वीप इन तीन द्वीपों सम्बन्धी क्रमशः बावन, चार, चार अकृत्रिम स्वतंत्र चैत्यालय जानने चाहिये । (मध्यलोक में सब अकृत्रिम चैत्याल्य ४५८ हैं)।
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