SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२] वृहद्र्व्यसंग्रहः [ गाथा ३५ परिवेष्ट्य तिष्ठति । तस्माद्बहिर्भागे योजनलक्षाष्टकं गत्वा पुष्करवरद्वीपस्य अर्द्ध वलयाकारेण चतुर्दिशाभागे मानुषोत्तरनामा पर्वतस्तिष्ठति । तत्र पुष्करार्धेऽपि धातकीखण्डद्वीपवद्दक्षिणोत्तरेणेक्ष्वाकारनामपर्वतद्वयं पूर्वापरेण क्षुल्लकमेरुद्वयं च । तथैव भरतादिक्षेत्रविभागश्च बोधव्यः। परं किन्तु जम्बुद्वीपभरतादिसंख्यापेक्षया भरतोत्रादिद्विगुणत्वं, न च धातकीखण्डापेक्षया । कुलपर्वतानां तु घातकीखण्डकुलपर्वतापेक्षया दिवगुणो विष्कम्भ आयामश्च । उत्सेधप्रमाणं पुनः दक्षिणभागे विजयार्धपर्वते योजनानि पञ्चविंशतिः, हिमवति पर्वते शतं महाहिमवति द्विशतं, निषधे चतुःशतं, तथोत्तरभागे च । मेरुसमीपगजदन्तेषु शतपश्चकं, नील निषध पावें गजदन्तानि योजन चतुःशतानि । नदीसमीपे वक्षारेषु चान्त्यनिषधनीलसमीपे चतुःशतं च । शेषपर्वतानां च मेरुं त्यक्त्वा यदेव जम्बूद्वीपे भणितं तदेवार्धतृतीयद्वीपेषु च विज्ञेयम् । तथा नामानि च क्षेत्रपर्वतनदीदेशनगरादीनां तान्येव । तथैव क्रोशद्वयोत्सेधा पञ्चशतधनुर्विस्तारा पद्मरागरत्नमयी वनादीनां वेदिका सर्वत्र समानेति । अत्रापि चक्राराकारवत्पर्वता आरविवरसंस्थानानि क्षेत्राणि ज्ञातव्यानि । मानुषोत्तरपर्वतादभ्यन्तरभाग एव मनुष्यास्तिष्ठन्ति, न इस प्रकार जो धातकीखंड द्वीप है उसको आठ लाख योजन विस्तार वाला कालोदक समुद्र बेड़े हुए है । उस कालोदक समुद्र के बाहर आठ लाख योजग चलकर पुष्करवर द्वीप के अर्ध भाग में गोलाकार रूप से चारों दिशाओं में मानुपोत्तर नामक पर्वत है। उस पुष्कराध द्वीप में भी धातकीखंड द्वीप के समान दक्षिण तथा उत्तर दिशा में इक्ष्वाकार दो पर्वत हैं, पूर्व-पश्चिम में दो छोटे मेरु हैं । इसी प्रकार (धातकीखंड के समान) भरत आदि क्षेत्रों का विभाग जानना चाहिए । परन्तु जंबू द्वीप के भरत आदि की अपेक्षा से यहाँ पर संख्या में दूने २ भरत आदि क्षेत्र हैं, धातकीखंड की अपेक्षा से भरत आदि दूने नहीं हैं। कुल पर्वतों का विष्कम्भ तथा आयाम धातकीखंड के कुल पर्वतों की अपेक्षा से दुगुना है। दक्षिण में विजयार्ध पर्वत की ऊंचाई का प्रमाण पच्चीस योजन, हिमवत् पर्वत की ऊंचाई १०० योजन, महाहिमवान् पर्वात की दो सौ योजन, निषध की चार सौ योजन प्रमाण है। तथा उत्तर भाग में भी इसी प्रकार उत्सेध प्रमाण है । मेरु के समीप में गजदन्तों की ऊंचाई पांच सौ योजन है और नील निषध पर्वतों के पास चार सौ योजन है । वक्षार पर्वतों की ऊंचाई नदी के निकट तथा अन्त में नील और निषध पर्वतों के पास चार सौ योजन है। मेरु को छोड़कर शेष पातों की जो ऊंचाई जंबू द्वीप में कही है सो ही पुष्कराद्ध तक द्वीपों में जाननी चाहिये । तथा क्षेत्र, पर्वत, नदी, देश, नगर आदि के नाम भी वे ही हैं, जो कि जंबू द्वीप में हैं। इसी प्रकार दो कोश ऊंची, पांच सौ धनुष चौड़ी पद्मराग रत्नमयी जो वन आदि की वेदिका है, वह सब द्वीपों में समान है । इस पुष्करार्ध द्वीप में भी चक्र के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy