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________________ १२८] वृहद्र्व्य संग्रहः [ गाथा ३५ तानि कथ्यन्ते । तद्यथा-पूर्वोक्ता या देवारण्यवेदिका तस्याः पश्चिमभागे क्षेत्रमस्ति, तदनन्तरं वक्षारपर्वतस्ततः परं क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, ततश्च क्षेत्रं, तस्माद्वक्षारपर्वतस्ततश्च क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, ततः क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतः, ततः क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, तदनन्तरं क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्रं, ततो मेरुदिग्भागे पूर्वभद्रशालवनवेदिका भवतीति नवभित्तिमध्येऽष्टौ क्षेत्राणि ज्ञातव्यानि । इदानीं तेषां क्रमेण नामानि कथ्यन्ते-वच्छा १, सुवच्छा २, महावच्छा ३, वच्छावती ४, रम्या ५, रम्यका ६, रमणीया ७, मङ्गलावती ८ चेति । इदानीं तन्मध्यस्थितनगरीणां नामानि कथ्यन्ते-सुमीमा १, कुण्डला २, अपराजिता ३, प्रभाकरी ४, अङ्का ५, पद्मा ६, शुभा ७, रत्नसंचया ८ चेति, इति पूर्व विदेहक्षेत्रविभागव्याख्यानं समाप्तम् । अथ मेरोः पश्चिमदिग्भागे पूर्वापरद्वाविंशतिसहस्रयोजनविष्कम्भो पश्चिमभद्रशालवनानन्तरं पश्चिमविदेहस्तिष्ठति । तत्र निषधपर्वतादुत्तरविभागे शीतोदोनद्या दक्षिणभागे यानि क्षेत्राणि तेषां विभाग उच्यते । तथाहि-मेरुदिग्भागे या पश्चिमभद्रशालवनवेदिका तिष्ठति तस्याः पश्चिमभागे क्षेत्रं भवति, ततो दक्षिणोत्तरायतो क्षेत्र हैं उनको कहते हैं । वे इस प्रकार हैं-पहले कही हुई जो देवारण्य की वेदी है उसके पश्चिम में क्षेत्र है, तदनन्तर वक्षार पर्वत है, उसके आगे क्षेत्र है, फिर विभङ्गा नदी है, उसके बाद क्षेत्र है, फिर वक्षार पर्वत है, उसके आगे क्षेत्र है, तत्पश्चात् विभङ्गा नदी है, फिर दोत्र है, पुनः वक्षार पर्कात है, फिर क्षेत्र है, पश्चात् विभङ्गा नदी है, तदनन्तर क्षेत्र है, फिर वक्षार पर्णत है, फिर क्षेत्र है, उसके आगे मेरु के पूर्व दिशा वाले पूर्णभद्रशाल वन की वेदी है । ऐसे नौ भित्तियों के मध्य में आठ क्षेत्र जानने योग्य हैं। उन क्षेत्रों के नाम क्रम से कहते है-वच्छा १, सुवच्छा २, महावच्छा ३, वच्छावती ४, रम्या ५, रम्यका ६, रमणीया ७ और मंगलावती ८ । अब उन क्षेत्रों में स्थित नगरियों के नाम कहते हैंसुसीमा १, कुण्डला २, अपराजिता ३, प्रभाकरो ४; अंका ५, पद्मा ६, शुभा ७ और रत्नसंचया ८ । इस प्रकार पूर्व विदेह क्षेत्र के विभागों का व्याख्यान समाप्त हुआ। अव मेरु पर्वत से पश्चिम दिशा में पूर्व-पश्चिम बाईस हजार योजन विस्तार वाला पश्चिम भद्रशाल वन के बाद पश्चिम विदेह क्षेत्र है । वहाँ निषध पर्वत से उत्तर में और शीतोदा नदी के दक्षिण में जो क्षेत्र हैं, उनका विभाग कहते हैं-मेरु की पश्चिम दिशा में जो पश्चिम भद्रशाल वन की वेदिका है, उसके पश्चिम भाग में क्षेत्र है, उससे आगे दक्षिणउत्तर लम्बा वक्षार पर्वात है, तदनन्तर क्षेत्र है, फिर विभंगा नदी है, उसके बाद क्षेत्र है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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