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________________ गाथा ३५] द्वितीयोऽधिकारः [१२७ तस्मादेव मेरुपर्वतात्पूर्वस्यां दिशि पूर्वापरेण द्वाविंशतिसहस्रयोजनविष्कम्भं सवेदिकं भद्रशालवनमस्ति । तस्मात्पूर्वदिग्भागे कर्मभूमिसंज्ञः पूर्व विदेहोऽस्ति । तत्र नीलकुलपर्वताद्दक्षिणभागे शीतानद्यो उत्तरभागे मेरोः प्रदक्षिणेन यानि क्षेत्राणि तिष्ठन्ति तेषां विभागः कथ्यते । तथाहि मेरोः पूर्व दिशाभागे या पूर्वभद्रशालवनवेदिका तिष्ठति तस्याः पूर्वदिग्भागे प्रथमं क्षेत्रं भवति, तदनन्तरं दक्षिणोत्तरायतो वक्षारनामा पर्वतो भवति, तदनन्तरं क्षेत्रं तिष्ठति, ततोऽप्यनन्तरं विभङ्गा नदी भवति, ततोऽपि क्षेत्रं, तस्मादपि वक्षारपर्वतस्तिष्ठति, ततश्च क्षेत्रं, ततोऽपि विभङ्गा नदी, तदनन्तरं क्षेत्रं, ततः परं वक्षारपर्वतोऽस्ति, तदनन्तरं क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, ततश्च क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्रं, तदनन्तरं पूर्वसमुद्रसमीपे यद्दवारण्यं तस्य वेदिका चेति नवभित्तिभिरष्टक्षेत्राणि ज्ञातव्यानि । तेषां क्रमेण नामानि कथ्यन्ते कच्छा १ सुकच्छा २ महाकच्छा ३ कच्छावती ४ आवर्ता ५ लाङ्गलावर्ता ६ पुष्कला ७ पुष्कलावती ८ चेति । इदानी क्षेत्रमध्यस्थितनगरीणां नामानि कथ्यन्ते । क्षेमा १ क्षेमपुरी २ रिष्टा ३ रिष्टपुरी ४ खड्गा ५ मञ्जूषा ६ औषधी ७ पुण्डरीकिणी ८ चेति । अत ऊवं शीताया दक्षिणविभागे निषधपर्वतादुत्तरविभागे यान्यष्टक्षेत्राणि उसी मेरु पर्वत से पूर्व दिशा में, पूर्व-पश्चिम बाईस हजार योजन विस्तार वाला वेदी सहित भद्रशाल वन है । उससे पूर्व दिशा में कर्मभूमि नामक पूर्वविदेह है। वहाँ नौल नामक कुलाचल से दक्षिण दिशा में और शीता नदी के उत्तर में मेरु की प्रदक्षिणा रूप से जो क्षेत्र हैं, उनके विभागों को कहते हैं। वह इस प्रकार है-मेरु से पूर्व दिशा में जो पूर्वभद्रशाल वन की वेदिका है, उससे पूर्व दिशा में प्रथम क्षेत्र है, उसके पश्चात् दक्षिणउत्तर लम्बा वक्षार पर्वत है, उसके बाद क्षेत्र है, उसके आगे विभङ्गा नदी है, उसके आगे क्षेत्र है, उसके अनन्तर वक्षार पर्वत है, फिर क्षेत्र है, फिर विभङ्गा नदी है, उसके अनन्तर क्षेत्र है, उसके पश्चात् वक्षार पर्वत है, उसके आगे क्षेत्र है, फिर विभङ्गा नदी है और फिर क्षेत्र है, उससे आगे फिर वक्षार पर्वत है, फिर क्षेत्र है, तदनन्तर पूर्व समुद्र के पास जो देवारण्य नामक वन है, उसकी वेदिका है। ऐसे नौ भित्तियों ( दीवारों ) से आठ क्षेत्र जानने चाहियें । क्रम से उनके नाम हैं-कच्छा १, सुकच्छा २, महाकच्छा ३, कच्छावती ४, आवर्ती ५, लाङ्गलावता ६, पुष्कला ७ और पुष्कलावती ८ । अब क्षेत्रों के मध्य में जो नगरियाँ हैं, उनके नाम कहते हैं-क्षेमा १, क्षेमपुरी २, रिष्टा ३, रिष्टपुरी ४, खडगा ५, मंजूषा ६, औषधी ७ और पुण्डरीकिणी ८। इसके ऊपर शीता नदी से दक्षिण भाग में निषध पर्वत से उत्तर भाग में जो आठ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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