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________________ गाथा ३५] द्वितीयोऽधिकारः [ १२६ वक्षारपर्वतस्तिष्ठति, तदनन्तरं क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, ततश्च क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतस्ततः परं क्षेत्र, ततो विभङ्गा नदी, ततः क्षेत्र, ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्र, ततः विभङ्गा नदी, ततःक्षेत्र, ततः वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्र, तदनन्तरं पश्चिमसमुद्र समीपे यद्भूतारण्यवनं तिष्ठति तस्य वेदिका चेति नवभित्तिषु मध्येऽष्टौ क्षेत्राणि भवन्ति । तेषां नामानि कथ्यन्ते । पद्मा १, सुपद्मा २, महापद्मा ३, पद्मकावती ४, शंखा ५, नलिना ६, कुमुदा ७, सलिला ८ चेति । तन्मध्यस्थितनगरीणां नामानि कथयन्ति -अश्वपुरी १, सिंहपुरी २, महापुरी ३, विजयापुरी ४, अरजापुरी ५, विरजापुरी ६, अशोकापुरी ७, विशोकापुरी ८ चेति । अत ऊर्ध्व शीतोदाया उत्तरभागे नीलकुलपर्वतादक्षिणे भागे यानि क्षेत्राणि तिष्ठन्ति तेषां विभागभेदं कथयति । पूर्वभणिता या भूतारण्यवनवेदिका तस्याः पूर्वभागे क्षेत्र भवति । तदनंतरं वक्षारपर्वतस्तदनंतरं क्षेत्र, ततो विभंगा नदी, ततः क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतः, ततश्च क्षेत्र, ततश्च विभंगा नदी, ततोऽपि क्षेत्र, ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्र, ततो विभंगा नदी, ततः क्षेत्र, ततश्च वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्र, ततो मेरुदिशाभागे पश्चिमभद्रशालवनवेदिका चेति नवभित्तिषु उससे आगे वक्षार पर्वत है, तत्पश्चात् क्षोत्र है, फिर विभंगा नदी है, फिर क्षेत्र है, उसके आगे वक्षार पर्वत है, तत्पश्चात् क्षेत्र है, फिर विभंगा नदी है. उसके अनन्तर क्षेत्र है, उस के पश्चात् वक्षार पर्वत है, फिर क्षेत्र है, उसके अनंतर पश्चिम समुद्र के समीप में जो भूतारण्य नामक वन है उसकी वेदिका है। ऐसे नौ भित्तियों के मध्य में आठ क्षेत्र होते हैं। उनके नाम कहते हैं--पद्मा १, सुपद्मा २, महापद्मा ३, पद्मकावती ४, शंखा ५, नलिना ६, कुमुदा ७ और सलिला ८ । उन क्षेत्रों के मध्य में स्थित नगरियों के नाम कहते हैं-अश्वपुरी १, सिंहपुरी २; महापुरी ३, विजयापुरी ४, अरजापुरी ५, विरजापुरी ६, अशोकापुरी ७ और विशोकापुरी । अब शीतोदा के उत्तर में और नील कुलाचल से दक्षिण में जो क्षेत्र हैं, उनके विभाग-भेद का वर्णन करते हैं—पहले कही हुई जो भूतारण्य वन की वेदिका है उसके पूर्व में क्षेत्र है, उसके बाद वक्षार पर्वत, उसके अनंतर क्षेत्र, उसके बाद विभंगा नदी, उसके पीछे दोत्र, उसके पश्चात् वक्षार पर्वत, उसके अनंतर पुनः क्षेत्र, उसके बाद पुनः विभंगा नदी, उसके अनंतर पुन; क्षेत्र, उसके पश्चात् वक्षार पर्वत, उसके बाद क्षेत्र, तदनंतर विभंगा नदी, उसके अनंतर क्षेत्र, उसके पश्चात् वक्षार पर्वात, उसके बाद क्षेत्र है। उसके अनंतर मेरु को (पश्चिम) दिशा में स्थित पश्चिमभद्र-शाल वन की वेदिका है। ऐसे नौ भित्तियों के बीच में आठ क्षेत्र हैं। उनके नाम क्रम से कहते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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