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________________ १२४] वृहद्र्व्यसंग्रहः [ गाथा ३५ नशतपञ्चकमेकोनविंशतिभागी-कृतै कयोजनस्य भागषट्कं च यद्दक्षिणोत्तरेण कर्मभूमिसंज्ञभरतक्षेत्रस्य विष्कम्भप्रमाणं, तद्विगुणं हिमवत्पर्वते, तस्माद्विगुणं हैमवतक्षेत्र, इत्यादि द्विगुणं द्विगुणं विदेहपर्यन्तं ज्ञातव्यम् । तथा पद्महदो योजनसहस्त्रायामस्तदद्ध विष्कम्भो दशयोजनावगाहो योजनैकप्रमाणपद्मविष्कम्भस्तस्मान्महापद्मे द्विगुणस्तस्मादपि तिगिछे द्विगुण इति । __ अथ यथा भरते हिमवत्पर्वतान्निर्गतं गङ्गासिन्धुद्वयं, तथोत्तरे कर्मभूमिसंहरावतक्षेत्रे शिखरिपर्वतान्निर्गतं रक्तारक्तोदानदीद्वयम् । यथा च हैमवतसंज्ञे जघन्यभोगभूमिक्षेत्रे महाहिमवद्धिमवन्नामपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं रोहितरोहितास्यानदीद्वयं, तथोत्तरे हैरण्यवतसंज्ञजघन्यभोगभूमिक्षेत्रे शिखरिरुक्मिसंज्ञपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं सुवर्णकूलारूप्यकूलानदीद्वयम् । तथैव यथा हरिसंज्ञमध्यमभोगभूमिक्षेत्रे निषधमहाहिमवन्नामपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं हरिद्धरिकान्तानदीद्वयं, तथोत्तरे रम्यकसंज्ञमध्यमभोगभूमिक्षेत्रे रुक्मिनीलनामपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं नारीनरकान्तानदीद्वयमिति विज्ञेयम् । सुषमसुषमादिषट्कालसंबंधिपरमागमोक्तायुरुत्सेधादिसहिता दशसागरोपमकोटिप्रमितावसर्पिणी तथोत्सर्पिणी च यथा भरते शीता-शीतोदा दोनों नदियों का इनसे भी दूना परिवार हैं। दक्षिण से उत्तर को पाँच सौ छब्बीस योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से ६ भाग प्रमाण कर्मभूमि भरत क्षेत्र का विष्कम्भ है । उससे दूना हिमवत्पर्वत का, हिमवत् पर्वत से दूना हैमवत क्षेत्र का, ऐसे दूना-दूना विष्कम्भ विदेह क्षेत्र तक जानना चाहिये । पद्मद एक हजार योजन लम्बा, उस से आधा ( पाँच सौ योजन ) चौड़ा और दश योजन गहरा है, उसमें एक योजन का कमल है, उससे दूना महापद्म ह्रद में और उससे दूना तिगिंछ ह्रद में जानना। जैसे भरत क्षेत्र में हिमवत् पर्वत से गङ्गा तथा सिंधु ये दो नदियें निकलती हैं पैसे ही उत्तर दिशा में कर्मभूमि संज्ञक ऐरावत क्षेत्र में शिखरी पर्वात से निकली हुई रक्ता तथा रक्तोदा नामक दो नदिये हैं। जैसे हैमवत नामक जघन्य भोगभूमि क्षेत्र में महाहिमवत् और हिमवत् नामक दो पर्वतों से क्रमशः निकली हुई रोहित तथा रोहितास्या, ये दो नदियाँ हैं, इसी प्रकार उत्तर में हैरण्यवत नामक जघन्य भोगभूमि में, शिखरी और रुक्मी नामक पर्वातों से क्रमशः निकली हुई सुवर्णकूला तथा रूप्यकूला, ये दो नदियाँ हैं। जिस तरह हरि नामक मध्यम भोगभूमि में, निषध और महाहिमवन पर्वतों से क्रमशः निकली हुई हरितहरिकान्ता, ये दो नदियाँ हैं, उसी तरह उत्तर में रम्यक नामक मध्यम भोगभूमि-क्षेत्र में रुक्मी और नील संज्ञक दो पोतों से क्रमशः निकली हुई नारी-नरकान्ता दो नदियां जाननी चाहियें। सुषमसुषमा आदि छहों कालों सम्बन्धी आयु तथा शरीर की ऊंचाई आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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