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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
कवि का कहना यही है कि अपने गन्तव्य की ओर दृढ़ विश्वास के साथ चलने वाला व्यक्ति अपने आत्मिक बल पर एवं अपने इष्ट पर इतना भरोसा रखता है कि भयानक से भयानक संकट और मृत्यु तक की परवाह न करता हुआ बढ़ता चला जाता है । न वह किसी उपसर्ग से डरता है और न ही किसी प्रलोभन में उलझता है। उसकी दृष्टि केवल अपने लक्ष्य की ओर होती है और उसमें वह अपने आत्मविश्वास को ही सहायक मानता है ।
मंत्री कौन चुना गया ?
एक लघु कथा है । किसी विशाल साम्राज्य के राजा को एक मंत्री की आवश्यकता पड़ी। उसने अपने राज्य के अनेक बुद्धिमान व्यक्तियों को बुलाया तथा उनकी परीक्षा ली।
कई प्रकार से परीक्षा लेने के पश्चात् राजा ने तीन योग्य व्यक्तियों को छांटा और उनमें से भी सर्वश्रेष्ठ एवं बुद्धिमान व्यक्ति को मंत्रिपद के लिये चुनने का निश्चय किया। इस अन्तिम चुनाव के लिये भी उसने पुन: एक परीक्षा लेने का विचार किया। इस परीक्षा के लिये राजा ने जाहिर किया कि तीनों परीक्षार्थियों को अगले दिन एक कमरे में बंद कर दिया जाएगा और उसमें ऐसा अद्भुत ताला होगा जो अन्दर से ही खुल सकेगा पर चाबी से नहीं वरन गणित-विधि से खुलेगा।
मंत्रिपद के उम्मीदवार तीनों व्यक्तियों ने भी इस बात को सुना और उसके परिणामस्वरूप दो तो महान् चिन्ता में पड़ गए और रातभर तालों के विषय में लिखे गए विविध ग्रन्थों को पढ़ते रहे और गणित के नियमों को याद रखने के लिये माथापच्ची करते रहे। संपूर्ण रात्रि के जागरण से और मानसिक परिश्रम से उनका दिमाग थक गया, आँखें सूज आई और चेहरा निस्तेज दिखाई देने लगा।
पर तीसरा व्यक्ति इस बात से पूर्णतया लापरवाह था कि कल ताला कैसे खोला जाएगा। वह रात्रि को पूर्ण शांति से सोया और प्रातःकाल नित्यकर्मों से निपटकर अपने अन्य दोनों साथियों के साथ राजदरबार की ओर रवाना हो गया।
जैसा कि राजा ने सूचित किया था, उन तीनों मंत्रिपद के उम्मीदवार व्यक्तियों को राज-भवन के एक विशाल कमरे में बंद कर दिया गया। उसके द्वार पर वास्तव में ही ऐसा विचित्र ताला लगा हुआ था जिस पर गणित के कई अंक और आड़ी-टेढ़ी कुछ रेखाएं थीं, जिन्हें देखकर ही ऐसा लगता था कि यह ताला खोलना बड़ा कठिन कार्य है । ताला बंद करके उन तीनों को यह कह दिया गया कि जो
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